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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण' भट्ट की आत्मकथा ३४६ के साथ भूलोक का अनुप्रास मिला सकती हैं । मैंने फिर छेड़ा---'कुछ वर्णन कर के सुनाओ न बंधु, सूखी बातों में क्या धरा है ।' धावक अपनी मस्ती में शिखान्त तक मग्न था । बोला-गुरु, इस शोभा को एक ही कवि वर्णन कर सकता है, सो भी यदि कमल नयनाओं का प्रसाद पा सका हो तब । जानते हो वह कौन है ?--अंगहीन देवता कोई !११-धावक ने इस प्रकार अाँखें नचाई मानों एकमात्र वही उस देवता का पता जानता है ! मैने र लेते हुए पूछा कि फिर कान्य कुब्जेश्वर को यह बुद्धि तुमने क्यों नहीं दी । धावक ने उल्लसित भाव से कहा-'हे भगवान् , मिला है मगध देश का भकग्रा ! अरे गुरु, यह उत्सव क्या तुम्हारी भट्टिनी के लिये हो रहा है ? यह तो कान्य- कब्ज क, । द्रोही जनता को राजशक्ति की ओर से मदिरा पिलाई जा रही हैं । भट्टिनी का स्वागत तो उपनक्ष्य है। यहाँ की भोड़ी जनता को अनुप्रास से क्या मतलब । चारुस्मिता और विद्यु, दपांगा का नृत्य जो भी हो और जैसा भी हो यहाँ धुम मच जायगी । मेधातिथि और वसुभूति सिर पटक के मर जायंगे कान्यकब्ज की जनता महाराजा- धिराज का यश गाएगी । गुरु, तुम इतना भी नहीं समझते और देव- पुत्र नन्दिनी के मंत्री बने हो !! धावक ने बिल्कुल परवा न की कि उसके इस कथन का मेरे ऊपर क्या प्रभाव पड़ा। वह अनर्गल बकता ही गया–लेकिन चारुस्मिता है उत्तम नर्तकी । हाव-भाव-हेला में वह अद्वितीय है, सात्विक अभिनय तो वैसा नहीं कर सकती किन्तु बिचित्र माधुर्य है उसकी चारियों में। जितना सुन्दर बंशी बजाती है, उतना सुन्दर मृदंग भी, आलस्य तो उसे छू नहीं गया, नाचती हैं तो


१ तुलनीय-- सौकमिन्दीवर लोचनानां दोलासु लोलासु यदुल्लास । यदि प्रसादालभते कवित्वं जानातितद् वर्णयितु 'मनोभूः ॥