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बाण भट्ट की आत्म-कथा

माग भट्ट की अस्मि-कथा ३३९. कोई देवपुत्र नहीं, कोई राजाधिराज नहीं, कोई महासामन्त नहीं। जवानो, प्रत्यन्त दस्यु आ रहे हैं । तो फिर कौन है जो प्रायवर्त को हाहाकार के बवण्डर से बचा- एगा १–आर्यावर्त के जवान, अर्यावर्त के जवान ! जवानो, प्रत्यन्त दस्यु अा रहे हैं ! अमृत के पुत्रो, मर ग-यज्ञ की आहुति बनो । माताश्रों के लिये, बहनों के लिये, कुल ललना के लिये प्राण देना सीखो । उठो जवान, प्रत्यन्त दस्यु आ रहे हैं। अमृत के पुत्रो, मृत्यु का भय मिथ्या है, जीने के लिये मरो, मरने के लिये जिश्रा, नागाधिराज, तुम्हारी श्रीर ताक रहे हैं ! जवानो, प्रत्यन्त दस्यु अा रहे हैं। महामाया तुम्हें पुकार रही हैं । महामाया तुम्हारी माता है, माता की लाज रखो । अमृत के पुत्री, प्रत्यन्त दस्यु अा रहे हैं । वारा, महामाया के त्रिशूल की शपथ है, म्लेच्छवाहिनी की छाया भी इस देश पर न पड़ने पावे । अवानो, प्रत्यन्त दस्यु अा रहे हैं। अमृत के पुत्रो, मृत्यु का भय मिथ्या है, कर्तव्य में प्रमाद करना पाप है, संकोच और दुविधा अभिशाप हैं । जवानो, प्रथन्तु दस्यु श्रा रहे हैं । गान समाप्त हुआ । भैरवियों ने उल्लास के साथ अपने त्रिशूलों को शून्य में उछालते हुए कहा--'जय ! अर्यावर्त के तरुणों की जय ! महामाया माता की जय !' एक सहस्र गंभीर कुंठों से भीर सेना ने प्रतिध्वनि की--‘महाभाया माता की जय !! भैरवियों ने फिर गाया- 'वह सहसफण अजगर के फूत्कार के समान कौन गरज रहा हैं ?--यह उत्ताल समुद्र नहीं हैं, विद्युद्गर्भ मेध नहीं है-यह हैं। आर्यावर्त के तरुण का दुरं गम वाहिनी । कौन है जो इसकी गति रोक सके, कौन है जो इसके तरंगावर्त