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बाण भट्ट की आत्म-कथा

३३२ बार भट्ट की आत्म-कथा भगिनी का स्वागत कर के धन्य होंगे। उन्होंने मुझे लिखा है कि जिस शर्त पर भी भट्टिनी अाना चाहें उसी शर्त पर उन्हें ले श्राश्रो । यह पढ़ कर मुझे आश्चर्य हुआ कि कुमार ने अभीर राज को भी हर प्रकार से प्रसन्न कर के अनुकूल करने का आदेश दिया है और साथ ही यह भी लिख दिया है कि गिरि संकट के उस पर जो मलेच्छवाहिनी जमी हुई हैं वह वर्षा काल बीतते ही टिड्डियों के दल की भाँति उतरने लगेगा उसकी गति केवल अभीर सेना ही रोक सकती है। अपनी प्यारी बहन कुमारी चंद्र दीधिति से उन्होंने अनुरोध किया है कि वे आभीरज से उनकी सेना को इस पवित्र कार्य में नियोग करने को कहे। मुझे तो स्पष्ट ही लिखा है कि यदि आाभीरराज सामन्त बनने को प्रस्तुत न हों तो उन्हें मित्र राजा के रूप में भी निमंत्रित किया जा सकता है। सब के अन्त में उन्होंने अत्यन्त आवश्यक कह कर यह भी लिख दिया है कि मैं अपने बड़े भाई उडुपति भट्ट को जो इन दिनों काशी के मीमांसकों में श्रेष्ठ माने जाते हैं, अवश्य साथ लेता अाऊँ । अन्त में यह लिखना वे नहीं भूले हैं कि कुमारों के मिलने का समा- चार देवपुत्र के पास पहुँचा दिया गया है । स्वयं प्राचार्य अवु पाद ही कुमारी को देखने के लिये दो-चार दिनों के भीतर ही उपस्थित हो सकते हैं, इसलिये भद्र श्वर से प्रस्थान करने में विलम्ब नहीं होना चाहिए । अन्त में उन्होंने अपनी बहन कुमारी चंद्रदीधिति के स्नेह पाने की तीव्र लालसा व्यक्त की हैं । सारा पत्र कूटनीति का विचित्र जाल है। किसी को भी छोड़ा नहीं गया है, प्रत्येक को फंसाने का प्रयत्न है और फिर भी नपा-तुली भाषा में । कहीं उच्छवास नहीं है । अधिकन्तु लिखने वाले की सहृदयता और उदाराशयता प्रत्येक शब्द से प्रकट हो रही है। मैं पत्र पढ़ कर कुछ चिन्ता में पड़ गया। ऐसा न हो कि फिर किसी चाल में फँस जाऊ । अब मैं कुछ सावधान हो गया था । भट्टिनी ने कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद कहा---‘क्या सोच