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बाण भट्ट की आत्म-कथा

३२० बा। भट्ट की आत्म-कथा हमारे ऊपर है।' विग्रहवम प्रणाम करके चला गया। उस समय आकाश का पश्चिमी दिगन्त लाल हो आया था, एकाध विच्छिन्न मेध पटल उस गाढ़ लालिमा से सर्वांग लिप्त हो गए थे मानों महाकाल ने अपने अकुठ इंगित से यह बताना चाहा हो कि अर्या- वर्त के विच्छिन्न प्रयत्न इसी प्रकार रक्त धारा में श्रमस्तक डूब जायगे। मज्जमान जरठ भास्कर की दो-चार किरणे दिगन्त के छोर तक फैल गई थीं जो रक्त स्नान से सद्योविनिर्गत महाकालिका की नृत्यविकण पिगंल जटाश्नों का भ्रम उत्पन्न कर रही थीं; सारा अाकाश उद्ध म अग्नि-कुण्ड की भाँति जल रहा था, वृक्षों की उच्च शिखाओं पर चिपकी हुई लाल आभा भयंकर अाशंका उत्पन्न कर रही थी मानी ज्वाला के भय से भागने वाली वनदेवियों के चरण-लक्तक की ही लालिमा हो । धरती से अाकाश तक फैली हुई यह लाल शोभा न जाने किस विकट भविष्य की सूचना दे रही है, त्रिपुरभैरवी की इस वाम लीला का साक्षी क्या मैं ही होने जा रहा हूँ। क्या होने वाला है !