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बाण भट्ट की आत्म-कथा

दाणु भट्ट की आत्मकथा से धरती आच्छादित हो गई थी । पुष्प-मधु के पान करने से मत्त बनी हुई भ्रमरियाँ लता के हिंडोले पर झूल रही थीं। उत्फुल्ल लवली के पनवों में लीयमान कोकिल अपनी कूके में अनुरागियों को हृदय टूक- इक करने लगे थे, और शरीरहीन देवता के शस्त्रागार में लाख-लाख नए अस्त्र भर चुके थे। मैं चित्रकूट के एक सरोवर-तट पर स्नान करने के लिए अपनी सास के साथ गई । पसिद्धि है कि सरोवर में स्नान करने वाली स्त्री का सौभाग्य यन्त तक अचल रहता है । सरोवर एक घनच्छाया वृक्ष-संकुल प्रदेश में था। उसके तट पर जीर्ण पत्रों और पुष्पों की राशि जमी हुई थी। भ्रमर भार से उत्फुल्ल पुष्पों के पराग वक्र होकर तट-प्रदेश को सनहरा बनाए हुए थे। सारा सरोवर नाना भाँति के कुमुदों, कमलों, उत्पलों और शतदलों से परिपूर्ण था। सरोवर के एक प्रान्त में एक छोटा सा श्राम्र-कानन था, जिसकी मंजरीनालों को उन्मत्त कोकिलों ने नखाग्रों से विदीर्ण वर डाला था, और इसीलिए उनसे निरन्तर मधु टपकता रहता था । उसके दूसरे प्रान्त में एक छोटी-सी चन्दन-वीथिका थी, जिसके तरु- काण्डों पर लिपटे हुए सर्प पर्वत-विहारी मयूरों की के का-ध्वनि से सदा संत्रस्त बने रहते थे । सरोवर के तीरवत वृक्षों के नीचे जो कुसम-रेणु झड़ा हुआ था, उस पर कलहंस-मिथुनों ने विश्वस्त-भाव से विचरण किया था, और उनके पद-चिह्नों से बहुधा विकीर्ण बह रेणु-पटल चित्र- खचित वास्न्ती दुकूल की भाँति वनस्थली-रूपी अरण्यसुन्दरी की शोभा शतगुण विवृद्ध कर रहा था। मेरी सास ने जल स्पर्श करके गद्गद कंठ से कुछ प्रार्थना की, और फिर ध्यान-मग्न हो जप वरने में लग गई। मैं थोड़ी देर तक सरोवर की शोभा देख कर मुग्ध बनी ताकती रही । फिर मेरे मन में आया कि यह शाम्र वन और यह चन्दन-वीथिका कुछ इस प्रकार लगाई जान पड़ती हैं कि अवश्य ही मनुष्य के कुशल करों से सँवारी हुई होंगी यह सोचकर मैं धीरे-धीरे