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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाणु भट्ट की अस्म-कथा सदा नहीं रहेंगे; परन्तु तुम्हें सदा रहना है । अमृत के पुत्रो, मैं भविष्य देख रही हूँ । राजा, महाराजा और सामन्त स्वार्थ के गुलाम बनते जा रहे हैं । प्रजा भीरु और कायर होती जा रही है। विद्वान और शीलवान नागरिकों की बुद्धि कुण्ठित होती जा रही हैं । धर्माचरण में इसीलिए व्याघात उपस्थित हुआ है कि राजा अन्धा है, प्रजा अन्धी है और विद्वान अन्धे हैं । यह बड़ा अशुभ लक्षण हैं। अमृत के पुत्रो, मैं ऊर्ध्व बाहु होकर चिल्ला रही हैं, यह अशुभ लक्षण है। अपने-अापको बचाओ, धर्म पर दृढ़ रहो, न्याय के लिए मरना सीखो, ब्राह्मण से लेकर चाण्डाल तक एक हो जा---चट्टान की तरह दुर्भेद्य एक । यही बचने का उपाय हैं । अमृत के पुत्रो, राजपुत्रों की वेतन भोगी सेना की अाशा छोड़ो, मृत्यु का भय माया है ।-भीड़ मन्त्र-मुग्ध की भाँति सुनती रही । एकाएक महामाया वहाँ से हटी और तेज़ी से न- जाने किस अोर निकल गई । दि मूड़े नागरिकों ने कुछ भी नहीं समझा । सबने वेवल इतना ही अनुभव किया कि कुछ अप्रत्याशित घटनेवाला है। | मेरे देखते-देखते घट प्रवाह किधर से किधर बह गया। इस बीच पश्चिमी अाकाश लाल-पीला होकर कई बार रंग बदल चुका, मध्ये आकाश से अंगों का लेप करता हुआ अन्धकार काले अंजन की भाँति बरसता रहा और अब प्राची (पूर्व) दिशा के उदयगिरि के तट पर अन्तरित चन्द्रमा की गूढ़-पाण्डुर किरण छिटकने को प्राई । मैं इतना तो समझ गया हूँ कि किसी अज्ञात अपराध के कारण श्रीय विरतिवज्र और सचरिता वन्दी हैं; पर उनका अपराध क्या है, यह बात अभी तक समझ में नहीं आई। महामाया ने उपस्थित विषय की अवहेल। करके अध्याहृत विषय पर इतना बड़ा व्याख्याने क्यों दिया, यह भी मेरी बुद्धि के बाहर था । मैं यह भी नहीं समझ सका कि मेरा कुछ कर्तव्य इस व्यापार में हो सकता है या नहीं। अश्वारोही सैनिक