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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की अात्म-कथा २२६ की तरह सब को मन्त्रमुग्ध बना लेते हैं। वे कटेश भट्ट जब आवेश में नाच उठते हैं, तो ऐसा लगता है कि भूतों का राजा आसव पीकर प्रमत्त हो गया है ! यह विचित्र धर्म है, आयुष्मन् ! जाकर एक बार देखो न ।' मैंने नम्रतापूर्वक कहा-'अवश्य देखेगा। पर यह सुचरिता पहले क्या करती थीं, अार्य है। वृद्ध हँसे–‘अपनी उम्र के लोगों से यथार्थ समाचार पा सकते हो, भद्र ! मैं पक्व-केश वृद्ध हूँ ।। वृद्ध इस बार रसाविष्ट हुए। अबकी बार उनमें काशीवासी का स्वभाव स्पष्ट ही प्रकट हो गया। मैंने स्मितपूर्वक उत्तर दिया---'क्षमा करे श्रार्य, मैं देखने जाते हैं।' वृद्ध ने कहा-'परन्तु तुम तो कुछ पूछना चाहते थे न, भद्र १ मुझे जल्दी थी । यही सब बातें पूछनी थीं, अर्थ !:-कहकर मैंने प्रणाम किया और विदा ली । वृद्ध ने बहुत अधिक सूचना दे दी थी। मैं सीधे उस विशाल पट-मण्डप में गया। भीड़ प्रतिक्षण बढ़ती आ रही थी । सचमुच ही आगतों में अधिकांश स्त्रियाँ थीं । सब के मुख पर भक्ति और उल्लास का भाव था । श्राचार्य बैंकटेश भट्ट एक चन्दन-काष्ठ के आसन पर पद्मासन बाँध कर बैठे थे। उनके मुख से एक प्रकार का आनन्द-गद्गद् भाव प्रकट हो रहा था। आसन के ठीक सामने एक वेदी पर कलश स्थापित था। मैंने आश्चर्य के साथ देखा कि मन और तन्दुल से एक ऊध्व मुख त्रिकोण को आड़े भाव से विद्ध कर के अधोमुख त्रिकोण चक्र ठीक उसी प्रकार अंकित था, जिस प्रकार शक्ति तान्त्रिकों का श्रीचक्र हुआ करता है। उस चक्र के मध्य में प्रफुल्ल शतदल देख कर तो मैं और भी आश्चर्यचकित रह गया | मैंने अब तक यही समझा था कि ऊर्ध्वमुख त्रिकोण शिव-तत्व का प्रतीक है और अधोमुख त्रिकोण