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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्मकथा किया है-“कुछ अाज्ञा है क्या, देवि १ भट्टिनी ने और भी प्रसन्नता प्रकट की । बोलीं-इस पत्र से इतने उत्तेजित क्यों हो गए', भट्ट ?? मेरे मन में अज्ञात अाशंका का प्रादुर्भाव हुआ।। क्या भट्टिनी ने इसे पढ़ लिया है ? मैंने शंकित भाव से कहा--पत्र का विषय कुछ चिन्तित करने वाला ही है, देवि ! पर सेवक का अपराध मार्जित हो, मैं इस एक विषय को अपने छिपा रखने की अनुमति चाहता हूँ । भट्टिनी ने मेरे मनोभावों का रस लेते हुए कहा-बहुत गोपनीय है क्या ?? और मधुर हँसी से खिलखिला उठीं । मैं भट्टिनी के विनोद का रस ले सकता था; पर भट्टिनी को क्या मालूम कि मेरा चित्त कितना उद्विग्न है। मैंने गम्भीरता के साथ ही उत्तर दिया--‘हाँ देवि, कुछ दिन तक अाप से इस संवाद को छिपा रखना ही श्रेयस्कर समझता हूँ । भट्टिनी ने निष्ठुरतापूर्वक और भी छेड़ा-“मैं विघ् बन सकती हूँ ! यही बात है न ? मैं इतबुद्धि ! थोड़ी देर तक मन्द-मधुर स्मित से मेरी विवशता को उकसाती हुई वे खड़ी रहीं। फिर सहज भाव से बोलीं--‘आभीर सामन्त की रानी ने मुझे भी एक प्रति भेजी है। मैं इसे पढ़ चुकी हैं। चत्तो, इसमें उत्तेजित होने की क्या बात है ? मैं आश्चर्य में निमग्न-सा हो गया। देर तक भट्टिनी की विनोद-प्रफुल्ल मुख श्री की अोर अवाक भाव से देखता हुआ बोला---‘धन्य हो देवि, देवपुत्र की उपयुक्त कन्या हो । दूसरा कौन इस प्रकार धीर रह सकता था १ उपयुक्त स्थल में देवपुत्र का पक्षपात है । 'समुद्र से ही कौस्तुभमणि का प्रादुर्भाव हो सकता है, पृथ्वी से ही जानकी का जन्म सम्भव है, हिमालय से ही पार्वती की उत्पत्ति हुई है, विष्णु-चरण से ही गंगा प्रवाहित हो सकती है, ब्रह्मा से ही त्रयी विद्या प्रादुर्भत हो सकती है। ऐसे समय में मानसिक वेगों का धारण करना देवपुत्र की कन्या का ही कार्य है। आश्वस्त हूँ देवि, आर्यावर्त आज कृतार्थ है, देव-मन्दिर और विहार आज सुरक्षित हैं,