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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाप भट्ट की अम-कथा १८१ बजाने वाले दो-तीन किशोरवय युवकों के अतिरिक्त पुरुष उनमें थे ही नहीं । स्त्रियाँ तरंगायत उपान्तवाली लाल शाटिकाएँ पहने हुई थीं और नील कंचुक के ऊपर हारिंद्र उत्तरीय धारण किए हुई थीं। वे उन्मत्त-भाव से नाच रहीं थीं । उनके अधूिन-वेग से तरंगायित शाटिकान्त इस प्रकार भ्रमित हो उठता, मानो अनुराग के समुद्र में वात्याचक्र चंचल हो जटा हो। उनकी चारियाँ तालानुश नहीं थीं; परन्तु इतनी उद्दाम थीं कि उनके हारिद्र उत्तरीय और नील कंचुकों का एक घूर्णमान चक्रबाला तैयार हो जाता था। दीर्घ वेणियाँ मटकन- झटकन के वेग से धरती और आकाश को काली मसृण रेखाओं से पूर्ण कर देती थीं । बार-बार ऊपर-नीचे आने वाले लाल करतल आकाश-रूप नील सरोवर में अधोमुख स्वर्ण-कमलों की शोभा भर देते थे और क्षीण कटि-प्रान्त झंझा में बार-बार झटका खाती हुई पार्वतीय शतावरी लता की भाँति दर्शक को चिन्तापरायण बना देते थे-- न-जाने कब कौन-सा झटका उन्हें मरोड़ दे ! मैं मुग्ध-भाव से इस उद्दाम मनोहर नृत्य को देखता रहा । एक बार जब नृत्य का वेग कुछ देर के लिए रुका, तो मैंने मदल बजाने वाले युवक से उनका परिचय पूछा । उसने जो-कुछ बताया, उसका सारांश यह था कि वे गंगा और महासरयू के संगम पर जो वज्रतीथ है, उसी स्थान पर देवी की पूजा करने गए थे । अाज महा- नवमी की तिथि हैं। आज वज्रतीथ की देवी के पूजन का परम महा- त्म्य है । उनका ग्राम महासरयू के उस पार है। मैंने मतलब की बात भी उनसे पूछ ली । उनका सरदार लोरिक देव प्रताप मल्ल है । ब्राहाणों और देवताओं पर उसकी अपरिमेय श्रद्धा है और मेरे-जैसे विद्वान् को वे लोग सिर-अाँखों पर रखेगे। उस युवक ने तो उसी क्षण मुझे ले चलने का श्राग्रह प्रकट किया; पर मैंने देवी के दर्शन का बहाना बना कर पिण्ड छुड़ाया। युवक ने और भी अग्रिह करते हुए