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बाण भट्ट की आत्म-कथा


की और इस तेज़ी से बढ़ती जा रही थी, मानो पूर्व-प्रान्त के उदय- गिरि को कोई सन्देश पहुँचाने जा रही हो। मैं अपने दो साथियों के साथ उन्हीं के दिखाए मार्ग से बढ़ता जा रहा था। रास्ते में एक मन्दिर के सामने अनेक प्रकार के तोरण, कलश और वन्दनवार देखकर मैंने अपने साथियों से पूछा कि यह क्या होने जा रहा है । उन्होंने बताया कि यह सरस्वती-मन्दिर है । प्रतिवर्ष मदनोत्सव के अवसर पर यहाँ 'समाज बैठा करता है, उसी की तैयारी हो रही है । ‘समाज में नगर की लक्ष्मी, शोभा की खनि, कला की स्रोतस्विनी, परम शील-गुणान्विता गणिका चारुस्मिता का मयूर और पद्म-नृत्य होने वाला है। प्रतिवर्घ 'समाज' की व्यवस्था ‘छोटे महाराज' की ओर से होती थी । नाना दिग्देश से समागत कवि, कलाकार और गणिकाएँ नृत्य-गीत की प्रतियोगिता में उतरती थीं। नाना- विधि काव्य-समस्याएँ, मानसी काव्य-क्रिया, पुस्तक-वाचन, दुर्वाचक-योग, अक्षर-मुष्टिक, पद्म-विन्दुमती आदि कलाओं से समस्त नागरिकों का मनोविनोद होता था। पर कल न जाने क्यों छोटे महाराज ने “समाज’ बन्द करा दिया है। अनेक गुणी लौटने लगे थे ! स्थाण्वीश्वर की कीर्ति को मलिन होते देख कुमार कृश्णु- वर्धन ने स्वयं इस समाज की व्यवस्था कराई है। आज इसीलिए जल्दी-जल्दी में तैयारी हो रही है। प्रदोष-काल में चारुस्मिता का मयूर और पद्म-नृत्य हो । आज तक उसने यह नृत्य राजपुरुषों के अतिरिक्त और किसी को नहीं दिखाया था ; पर आज प्रथम बार नागरिक इस दुर्लभ नृत्य को देखेंगे । इसीलिए आज नगर में बड़ा समारोह हैं । कान्यकुब्ज की सब से श्रेष्ठ गौरवभूता गणिका के अपूर्व नृत्य-कौशल को देखने के लिए आज नागरिकों के जन-सोत की बाढ़ आ जायगी। मैंने सरस्वती-मन्दिर के सामने बनी हुई इस विशाल प्रेक्षशिला को देखा । विराट पटवास शाल-प्रांशु सोलह