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बाण भट्ट की आत्म-कथा

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बाण भट्ट की अात्म-कथा ‘प्रवृत्तियों की पूजा करने का क्या तात्पर्य हो सकता है ?? बाबा ने क्या कहा है ??

  • बाबा ने कहा है कि प्रवृत्तियों से डरना भी ग़लत है, उन्हें छिपाना भी ठीक नहीं और उनसे लजित होना भी वालिशता है । फिर उन्होंने कहा है कि त्रिभुवन मोहिनी ने जिस रूप में तुझे मोह लिया है, उसी रूप की पूजा कर, वही तेरा देवता है। फिर विरतिवज्र से उन्होंने कहा-इस मार्ग में शक्ति के बिना साधना नहीं चल सकती। ऐसी बहुत-सी बातें उन्होंने बताईं, जो अश्रुतपूर्व थीं। क्यों अम्ब, शूकि क्या स्त्री को कहते हैं ? और स्त्री में क्या सचमुच त्रिभुवनमोहिनी का वास होता है ?

‘देख बाबा, तू व्यर्थ की बहस करने जा रही है। बाबा ने जोकुछ कहा है, वह पुरुष का सत्य है । स्त्री का सत्य ठीक वैसा ही नहीं है । उसका विरोधी है, मातः १ । ‘पूरक है रे । पूरक अविरोधी हुआ करता है । मैं समझ नहीं सका।। ‘समझ जायगा, तेरे गुरु प्रसन्न हैं, तेरी कुण्डलिनी जाग्रत है, तुझे कौल-अवधूत का प्रसाद प्राप्त है। उतावला न हो। इतना याद रख कि पुरुष वस्तु-विच्छिन्न भाव-रूप सत्य में आनन्द का साक्षात्कार करता है, स्त्री वस्तु-परिगृहीत रूप में रस पाती है। पुरुष नि:संग है, स्त्री असक्त; पुरुष निद्वन्द्व है, स्त्री द्वन्द्वोन्मुखी; पुरुष मुक्त है, स्त्री बद्ध । पुरुष स्त्री को शक्ति समझ कर ही पूर्ण हो सकता है; पर स्त्री स्त्री को शक्ति समझ कर अधूरी रह जाती है । तो स्त्री की पूर्णता के लिए पुरुष को शक्तिमान मानने की आवश्यकता है न, अम्ब १ । ‘ना । उससे स्त्री अपना कोई उपकार नहीं कर सकती, पुरुष का