पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/८९

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बगुला के पंख ८७ दो कि पचा ही जाऊं।' 'पत्थर क्या माने रखता है, नवाब का दम है तो पहाड़ पचा लेना।' 'खैर, अगली चाल ?' 'बस किश्त मात।' 'मगर कैसे ?' 'प्यादे सों फरजी भयो टेढ़ो-टेढ़ो जात ।' 'क्या माने ?' 'अमा, माने साफ हैं । शतरंज खेली है कभी?' 'किसी दिन एक बाजी खेल लो । मगर उस्ताद की शान नहीं रहेगी।' 'तो क्या ज़रूरी है कि उस्ताद से बाज़ी बदो।' 'फिर ?' 'प्यादे थे, वज़ीर बन गए । अब बादशाह को शह पर शह दिए जानो, और मौका पाते ही घोड़े की मदद से किश्त मात ।' 'घोड़ा कौन ?' 'मैं।' 'लेकिन बादशाह ?' 'चेअरमैन ! अभी वाइस-चेअरमैन ही तो बने हो। कोई मामूली होता तो इसीपर खुश होता लेकिन तुम्हें तो इतने से खुश नहीं होना है। चेअरमैन बनना है।' 'मैं चेअरमैन कैसे बन सकता हूं?' 'बड़ी आसानी से । हाउस में तुम कांग्रेस ग्रुप के लीडर हो। कांग्रेस का हाउस में बहुमत है। चेअरमैन स्वतन्त्र उम्मीदवार है । उसकी पीठ पर हाउस नहीं है, दिल्ली की जनता है। दिल्ली की जनता ने उसे अवसर दिया और कांग्रेस ने उससे समझौता करके अपना मतलब साधा। अब हाउस तुम्हारा है दोस्त, बात-बात पर पख निकालो, चेअरमैन को कंडम करो, हाउस में हुल्लड़ मचवायो । चेअरमैन आटे की लोई है, लाला है, भाग खड़ा होगा। या तुम्हारी शरण आएगा। 'लेकिन कांग्रेस ने जो उसके साथ पैक्ट किया है।' 'वह खत्म हो गया। कांग्रेस ने उसे चेअरमैन बना दिया। अब कांग्रेस किसी N