पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/८६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बगुला के पंख काम कर दिखाने को बेचैन मालूम पड़ते हैं। कुछ कर दिखाने का यह अच्छा मौका है। हमारे सामने बजट पेश है । यह बजट साधारण नहीं है। हमें यह रकम राजधानी का सिंगार करने में, यहां के लोगों को सब सुख-सुविधा देने में खर्च करनी है । मेरे मेहरबान दोस्त शायद यही सुनना चाहते थे। वही मैं कह रहा हूं। मैं अपना हाथ बढ़ाता हूं अपने दोस्त की तरफ, वे आगे आएं और यह भूलकर कि हम कांग्रेसी हैं, वे जनसंघी-मिलकर ईमानदारी से ऐसा उपाय करें कि हमारे हाथों एक पाई भी फिजूल खर्च न हो और हम सब, जिन्हें यहां के लिए शहर के नागरिकों ने हमपर विश्वास करके चुना है, कसम खाएं कि नागरिकों से विश्वासघात न करेंगे।' तालियों की गड़गड़ाहट में जुगनू ने अपना भाषण खत्म किया। उसके बाद किसीका भाषण जमा नहीं। वास्तव में बजट का रूखा-सूखा अांकड़ों से भरा हुना भाषण सबके लिए रुचिकर कैसे हो सकता था। मीटिग समाप्त हुई । अब जुगनू पर बधाइयों की वर्षा हो रही थी। लोग आ-आकर उससे हाथ मिला रहे थे और वह झुक-झुककर दोनों हाथ जोड़कर, 'मैं किस लायक हूं। मैं एक अदना खादिम हूं।' कहकर अपनी नम्रता प्रकट कर रहा था। उसकी बगल में शोभाराम खड़ा मुस्करा रहा था। कुछ ऐसी महानताएं हैं, जिन्हें भाग्यशाली पुरुष अपने गुणों या प्रयत्नों के द्वारा प्राप्त कर लेता है । बहुधा यह महानता उस व्यक्ति की अपनी नहीं होती, अपितु उस पद या अोहदे की होती है जिसपर परिस्थितियां उसे बैठा देती हैं। और जब ऐसी परिस्थितियां आ उपस्थित होती हैं कि वह उस पद से हट जाए तो वह महानता भी समाप्त हो जाती है। ऐसा बहुधा देखा जाता है कि एक व्यक्ति जो मिनिस्टर की महिमा-मण्डित कुर्सी पर आसीन है, उस कुर्सी से हटते ही एक निरीह वक्ता रह जाता है। बहुधा ऐसा व्यक्ति अपने कार्यालय में भी एक आडम्बर के ही सहारे अपनी पद-मर्यादा बनाए रखता है। परन्तु ऐसे लोग तो बिरले ही होते हैं जो हर हालत में महान होते हैं, जिनकी महत्ता उनके