बगुला के पंख ७७ २० जब जुगनू वापस लौटा तो शोभाराम उसकी प्रतीक्षा कर रहा था । जुगनू इस समय' न शोभाराम से और न पद्मा से मिलना चाहता था। वह दबे पांव चुप- चाप अपने कमरे में घुस गया। परन्तु शोभाराम उसकी प्रतीक्षा कर रहा था । उसने तुरन्त ही उसे बुला भेजा । जुगनू को जाना पड़ा। शोभाराम ने कहा, 'भई मुंशी, तुमने तो हद कर दी । इस कदर तबियत खराब, सुबह से गए और अब लौटे हो। मैं तो आज जल्द ही लौट आया था, और तभी से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं। बहुत बातें करनी हैं।' 'कहिए।' जुगनू शोभाराम से आंख न मिला सका। 'बात यह है कि कल म्यूनिसिपल कमेटी के चेअरमैन और वाइस-चेयरमैन का चुनाव है । हमने यह निश्चय किया है कि कम से कम वाइस-चेअरमैन' तुम्हें बनाया जाए । ये जनसंघी बड़ा हो-हल्ला मचा रहे हैं । अब उनसे मोर्चा तुम्हें ही लेना होगा । कमेटी ने तय किया है कि म्यूनिसिपैलिटी में तुम्हीं कांग्रेस पार्टी के लीडर रहो । क्या कहूं, मेरी तबियत खराब रहती है और कांग्रेस ने सब भार मुझीपर डाल दिया है और मैं, भई, तुम्हारे ही भरोसे पर हूं। अव सब झोंक तुम्हें ही झेलनी होगी। ऐसा न हो कि कांग्रेस की भद्द हो जाए।' 'कहिए, मुझे क्या करना होगा ?' 'क्या करना पड़ेगा? यह कहो, क्या कुछ न करना पड़ेगा। दिल्ली म्यूनि- सिपैलिटी कोई साधारण म्यूनिसिपैलिटी नहीं है । दिल्ली भारत की राजधानी है और यहां की म्यूनिसिपैलिटी का सालाना जमा-खर्च ढाई करोड़ रुपया है, बस, इतने ही से समझ लो कि तुमपर जिम्मेदारी का पहाड़-सा बोझ लद जाएगा।' 'तो भाई साहब मैं भी जान लड़ा दूंगा। जब आप मेरी पीठ पर हैं तो मुझे क्या चिन्ता । किन्तु मेरी कमजोरियों को आप जानते हैं । वस, राह दिखाते चलिए। 'तुम्हारे गुणों को और शक्ति को भी मैंने जान लिया है। तभी तो मैंने तुम्हें आगे किया है। हिम्मत से काम लो और तन-मन से जुट जानो। फिर हम दुनिया को एक करिश्मा दिखा देंगे।'
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