बगुला के पंख संकेत करती हुई वह महिला लपकती हुई गई और कुछ रजिस्टर उठा लाई। उन्हें टेबल पर रखते हुए उसने कहा, 'ये पुस्तकों की सूचियां हैं, इनमें से आप अपनी पसन्द की पुस्तक चुन लीजिए । मैं निकलवा दूंगी।' जुगनू रजिस्टर के पन्ने उलट-पुलट करने लगा । महिला दूसरे काम में लग गई । पर बड़ी देर तक पन्ने उलटने पर भी वह किसी पुस्तक का नाम नहीं चुन सका। वह न किसी विषय को जानता था, न पुस्तक को। कैसे कोई पुस्तक पुस्तकालय से ली जाती है, यह भी नहीं जानता था। महिला फिर आई । उसने पूछा, 'पापको कौन-सी पुस्तक चाहिए।' जुगनू ने सूची में एक पुस्तक के नाम पर उंगली रख दी। महिला ने उसका नम्बर और संकेत-चिह्न नोट किया । कर्मचारी को वह नोट देकर कहा, 'यह पुस्तक निकाल दो।' और अपने काम में लग गई। कर्मचारी ने एक बहुत भारी-भरकम पुस्तक लाकर जुगनू के हाथों में थमा दी। वह उसे न पढ़ सकता था, न समझ सकता था । वह बहुत साधारण उर्दू लिखना-पढ़ना जानता था, तथा अंग्रेज़ी में किसी तरह नाम लिख सकता था। एक-दो प्राइमरी की पुस्तकें उसने पढ़ी थीं। हां, अंग्रेजी बोलने का अभ्यास उसका अच्छा था। परन्तु आज तो उसकी हीन भावना का दिन था । आज वह अपने जीवन की हीनता ही हीनता देख रहा था। उसने यहां आकर देखा कि इस ज्ञानसागर में तो डुबकी लगाने की योग्यता भी उसमें नहीं है । आत्म- ग्लानि ने उसे अभिभूत कर लिया। उसका मन हुआ कि वह जमुना में डूब मरे, वह उस बड़े-से पोथे को खोल, उसे टेवल पर सामने रख अांखें चढ़ाए पढ़ने का ढोंग कर रहा था। पर वह पड़ रहा था अपने अब तक के ग्रात्मचरित्र को। वह अपना नग्न, असहाय, नगण्य, हीन व्यक्तित्व देख और उसे भली भांति समझ रहा था। बड़ी देर तक वह उसी भांति बैठा रहा । वहुत लोग पाए, बहुत उठकर चले गए। इसका उसे कुछ भी ज्ञान न था। इस समय उसके मन में एक दुर्दम्य आकांक्षा उत्पन्न हो रही थी कि या तो वह ज्ञानार्जन करेगा या जान दे देगा। वह आकांक्षा संकल्प में बदलती जा रही थी। और अन्ततः उसने संकल्प किया कि वह अपने भाग्य' से लड़ेगा। भाग्य ने उसे जहां बैठा दिया है, वहां से वह नीचे न गिरेगा।
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