८५ खन्ना साहब पहले तो प्रस्ताव सुनकर चौंके । पीछे सोचने लगे। उनके मुख पर गम्भीरता छा गई। हकीकत यह थी कि शारदा के ब्याह की उन्हें चिन्ता थी और अभी तक कोई योग्य' लड़का उन्हें मिला नहीं था । शारदा उनकी इकलौती लाड़ली लड़की थी। एक प्रकार से वही उनकी सम्पत्ति की उत्तरा- धिकारिणी थी। वे चाहते थे कि कोई ऐसा लड़का मिल जाए जो उन्हींके पास आ रहे । पर ऐसे जो लड़के मिलते भी थे वे डाक्टर खन्ना की दृष्टि में जंचते न थे । जुगनू के सम्बन्ध में उन्होंने कभी सोचा भी न था ; यद्यपि जुगनू से उनकी घनिष्टता थी। इधर वे अवश्य कम मिलते रहे, पर जुगनू को वे पसन्द खूब करते थे। अब उन्हें ध्यान आया कि शारदा का रुख भी जुगनू से कुछ विपरीत नहीं है। इन सब बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा, 'आपका प्रस्ताव तो बहुत शुभ है । पर मुझे इस सम्बन्ध में घर में सलाह-मश्विरा करना होगा।' 'तो भाभी साहबा से सलाह भी मेरे सामने कर लीजिए । देखिए, मैं अब यह शादी देर तक रोक नहीं सकता। रिश्ते कई आ रहे हैं। पर मुझे तो शारदा बिटिया पसन्द है । फिर आप हमारे पुराने दोस्त हैं । इसके अलावा एक बात यह भी है कि मुंशी और शारदा भी एक दूसरे को जानते हैं।' 'लेकिन मुंशी से आपका क्या सम्बन्ध है ?' 'कमाल कर दिया डाक्टर साहब, आपको अभी यह बात भी मालूम नहीं ? अजी जनाब, वह मेरा रिश्ते में भांजा होता है।' 'भांजा ? तो क्या वह आपकी बिरादरी का है ? मैं तो समझता था मुंशी कायस्थ है । ऐसा ही शायद एक बार उसने कहा भी था।' लाला फकीरचन्द ज़ोर से हंस पड़े। उन्होंने कहा, 'वह सदा का मसखरा आदमी है । बचपन से ही वह शायरी के फेर में पड़कर ऐसी ही सोहबत में रहा । लेकिन डाक्टर साहब, आप भी क्या जात-पांत के पचड़े में हैं ?' 'मैं जानता हूं कि यह कोरा ढकोसला है । पर अभी तक मैं उसकी कैद में हूं। फिर भी शारदा के लिए यदि कोई मेरे मनपसन्द लड़का मिल जाए तो मैं जात-पांत की ऐसी परवाह न करूंगा।' 'परवाह आपको करनी ही न' चाहिए । यही सोचकर मैं आपके पास आया
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