पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२५५

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बगुला के पंख २५३ परिस्थिति के घोड़े पर सवार था। इन पांच सालों में उसने जो सबसे बड़ी योग्यता प्राप्त की थी-वह थी ढीठता । आप कहेंगे, यह भी कोई योग्यता है ? जी हां, यह सबसे बड़ी योग्यता है और मिनिस्टर बनने के लिए तो ढीठता ही एक मात्र योग्यता है। ज़रा-सी बेरुखाई भी हो तो वह और खिल उठती है। क्योंकि वैसी हालत में मिनिस्टर हर मुश्किल काम के समय भी हंस सकता है। खासकर फोटो खिचवाते वक्त ज़रूर-बिल-ज़रूर। सो जनाब, जुगनू मिनिस्टरी की कुर्सी पर ऐसा फिट हुआ कि जैसे उसके बाप-दादे भी पुश्तैनी मिनिस्टर थे। दुनिया में भूचाल आते हैं, ज्वालामुखी फूटते हैं, मनुष्य' के बनाए हुए प्रक्षेपणास्त्र पांच लाख मील शून्य आकाश में यात्रा करते हैं, ग्रह-उपग्रह परस्पर टकराते हैं। और भी बहुत-से असाधारण काम होते हैं, पर किसीको आश्चर्य नहीं होता। जुगनू वाणिज्यमन्त्री की कुर्सी पर बैठ गया, इसमें भी किसीको आश्चर्य नहीं होना चाहिए। आप यह मत समझिए कि अब वाणिज्यमन्त्रालय का बेड़ा गर्क हो जाएगा। या हमारी सरकार की दौलत-मदार पोल खुल जाएगी। इतमीनान रखिए, यह सब कुछ नहीं होगा। आजकल के मन्त्रालय मन्त्रियों की योग्यता पर नहीं चलते, अपने संगठन पर चलते हैं। वही बात जो हम कई बार कह चुके हैं, यहां फिर कहेंगे । घोड़ों पर गधा सवारी गांठता है । अंग्रेज़ ही यह परम्परा छोड़ गए थे। एक से बढ़कर एक कर्मठ और योग्य भारतीय क्लर्क, किरानियों की पढ़ी-लिखी जाति जोकि उन्होंने दो सौ साल की परम्परा से उत्पन्न कर दी थी, उनमें योग्यतम निर्माण के स्रोत निरन्तर खुल रहे हैं। बड़ी से बड़ी उच्चतम भारतीय और अभारतीय शिक्षाएं विविध विषयों पर इन भारतीयों को अंग्रेज़ देते रहे हैं। इसके लिए बड़े-बड़े वजीफे भी देते रहे। इससे देश के तरुण, मेधावी मस्तिष्क विविध विद्याओं से विभूषित होकर, बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेकर अफसरों की कुर्सियों पर बैठकर सब राजकाज चलाते रहे । राजनीति और अर्थशास्त्र-विज्ञान और विकास के बड़े-बड़े पेचीदा असाध्य कार- नामे अंग्रेज़ी सरकार इन तरुण, मेधावी भारतीयों के हाथों कराती चली आ रही थी। हां, सर्वोच्च कुर्सी पर अंग्रेज़ बैठता था। वह न उतनी योग्यता रखता था, न उतना परिश्रम करता था, न किसी काम के बनने-बिगड़ने की उसे परवाह थी। वह अल्पकाल के लिए आफिस आता था, दस्तखत करता था।