बगुला के पंख २३६ ज्ञान था, न उनसे कुछ मतलब ही था। बोलने की अभी नौबत ही नहीं आई थी, बस गद्देदार कुर्सी पर जाकर ऊंघना, कांग्रेस के साथ राय देना, और भक्त बनाना, कौन्सिल भवन में मटरगश्त लगाना उनका काम था। गप्पें लड़ाने में दोनों फर्वट थे। पर लाला बुलाकीदास अब मन्त्रियों से अपनी सांठ-गांठ जोड़ रहे थे। आए दिन उन्हें दावतें दे रहे थे। अब बड़े-बड़े परमिट उन्हें मिलते जा रहे थे, और छोटे आदमियों से वे बात नहीं कर रहे थे। लाखों पर हाथ साफ करना उनका धन्धा था। चांदी की बड़ी-सी डिबिया में बढ़िया बनारसी पान भरे वे हाउस में इसी ताक में रहते थे कि कोई मिनिस्टर उधर से गुजरे तो वे पान पेश करने का सौभाग्य प्राप्त करें। किसी भी मन्त्री के उधर आने पर वे पान की डिबिया हाथ में लिए दौड़ते, पेश करते, बड़ी दीनता से कहते, 'यह सेवक तो आपका पानबर्दार है । कृपा कर एक जोड़ा पान का बीड़ा स्वीकार कीजिए।' और मन्त्री द्वारा स्वीकार किए जाने पर वे कृतकृत्य हो जाते थे। लाला लोगों में भी अब उनकी शान बढ़ गई थी। बातचीत अब वे ज़रा ढंग से करते थे। अब उन्हें एक ऐसे सैक्रेटरी की अत्यन्त आवश्यकता थी जो अंग्रेज़ी जानता हो, अंग्रेज़ी में खत लिख सकता हो, और विदेशी मुला- कातियों से बातचीत के समय' दुभाषिए का काम कर सकता हो । उन्होंने प्रत्येक देश के राजदूतों से सम्पर्क स्थापित करना और उन्हें बड़ी-बड़ी शानदार दावतें देना प्रारम्भ कर दिया था। और इसका फल भी उन्हें हाथोंहाथ मिल रहा था । बड़े-बड़े विदेशी व्यापारिक समझौते होते जा रहे थे और वे लाखों से करोड़ों में पहुंचते ही जा रहे थे । उनकी अपेक्षा जुगनू का स्थान ऊंचा-परन्तु सीमा कम थी । व्यापार-बिज- नेस वह कुछ जानता न था। और अब रिश्वतों का बाज़ार मन्दा पड़ गया था । क्योंकि उसे म्युनिसिपैलिटी से हटना पड़ गया था। यों वह घाटे में जा रहा था । पर उसे आशा थी कि वह एक दिन मिनिस्टर अवश्य होकर रहेगा। वह यह भी जानता था कि इसके लिए कुछ सम्बन्धित व्यक्तियों को प्रसन्न करने की ज़रूरत है, किसी योग्यता की ज़रूरत नहीं है । और अब वह मिनिस्टर की कुर्सी की प्राप्ति के लिए सब कुछ कर गुज़रने पर आमादा था।
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