बगुला के पंख २२३ 'मैं तुझे गंडासे से तीन टुकड़े कर डालूंगा।' 'तो जल्दी करो। क्योंकि मैं अब रुक नहीं सकती।' 'मैं देखू तू कैसे जाती है ?' जुगनू मुंह फेरकर खड़ा हो गया। उसने कहा, 'राधेमोहन, समझा-बुझाकर राजी-खुशी से तुम उसे रोकना चाहो तो बात दूसरी है, पर मारपीट करके ज़बर्दस्ती नहीं रोक सकते।' 'वह मेरी औरत है, मैं उसके साथ जो चाहूं करूंगा।' 'औरत तुम्हारी है तो भी तुम उसके साथ जो चाहे सो नहीं कर सकते। बहुत स्त्री-पुरुष मुहल्ले के इकट्ठे हो गए थे। कोई कुछ कहता था, कोई कुछ । परन्तु गोमती का जुगनू के साथ जाना किसीको पसन्द न था। इसका सब विरोध कर रहे थे। परन्तु गोमती निरुद्वेग स्थिर-दृढ़ अपना निर्णय सुना रही थी। वह कह रही थी कि मेरी बोटी-बोटी काट डालो पर मैं इनके साथ जाऊंगी, जाऊंगी। मुझे कोई नहीं रोक सकता। जुगनू के साथ लोगों की सहानुभूति कम होती जा रही थी। लोग कह रहे थे, 'पाप जाइए साहब, मियां-बीवी के झमेले में पड़ने से आपको क्या मतलब ? बुरी बात है, आप भी शरीफ आदमी हैं ।' 'आप लोगों को मेरी शराफत नापने से कोई सरोकार नहीं। सिर्फ आप यह गारण्टी दीजिए कि यह हीजड़ा उससे मारपीट नहीं करेगा, तो मैं चला जाता हूं, वरना पुलिस बुलाता हूं।' जुगनू के रुतबे को बहुत लोग जानते थे। पुलिस के नाम से वे डर गए। किन्तु कुछ लोगों ने कहा- 'हम ज़ामिन होते हैं । वह मारपीट नहीं करेगा। वस, आप चले जाइए।' 'अच्छी बात है। कौन-कौन ज़ामिन होते हैं, नाम लिखा दीजिए, क्योंकि मैं पुलिस में रिपोर्ट ज़रूर दर्ज कराऊंगा । आप लोगों के ज़मानत देने पर मैं जा रहा हूं, यह भी लिख दूंगा।' मुहल्ले के दो बुजुर्गों ने नाम लिखा दिया । उन्होंने कहा, 'यह तो बड़ी ही ज़बर्दस्ती है। उस गरीब ने बीमारी में आपसे हमदर्दी की, सेवा की और आप उसका यह बदला चुकाते हैं। वाह साहब, वाह। आप बड़े आदमी हो सकते हैं, परन्तु यह भी कोई बात है !'
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