बगुला के पंख २१६ . अब तक तो बहुत-सी बातें अब गोमती के हृदय में छिपती ही चली आ रही हैं । वह इन बातों को पति से नहीं कहती है । इंगित से भी प्रकट नहीं होने देती है । बड़े यत्न से छिपाती है। इस काम में वह इतनी होशियार है, यह बात विचारकर वह स्वयं आश्चर्य में पड़ जाती है। पर अब उसकी यह आदत बढ़ती जाती है । जुगनू इस बीच उसे और भी बहुत-से रुपये दे चुका है। हर बार वह उसे कसम देता है. कि राधेमोहन से न कहे । परन्तु इस कसम की अब ज़रूरत नहीं है, गोमती कभी न कहेगी-यह बात भी और दूसरी बातें भी, जो इन दिनों होती रहती हैं। चपरासी प्रतिदिन ही ढेर फल, विस्कुट, मिठाइयां और खाने-पीने की चीजें ले आता है । राधेमोहन को यह मालूम है । अतः इन चीजों को देखकर वह अव प्रश्न नहीं करता है। विरोध भी नहीं करता है । खुशी से उन चीज़ों को इस्तेमाल करता है, करने का अपना हक समझता है । परन्तु कुछ और भी चीजें आई हैं । विद्यासागर से मंगाई गई हैं । कुछ साड़ियां हैं, कुछ ज़ेवर हैं, कुछ शृंगार-पदार्थ हैं । गोमती का मन इन सब चीज़ों के लालच-लालसा से भरा है, परन्तु वह प्रकट में ना-ना कहती है, पर जुगनू कसम देता है । समझाता है, अभी रख लो, राधे से ज़िक्र मत करो, जब कभी पीहर जाकर लौटो तो कहना, पिता ने दिए हैं । बहुत अच्छा बहाना है । गोमती को रुच गया है। मुंशी को वह अब अांखों से नहीं एक इशारे से देखती है । संसार में ऐसा कोई आदमी हो सकता है, उसे विश्वास नहीं होता । जुगनू का ध्यान पाते ही उसकी चेतना में एक आनन्द की लहर आती है । खाते-पीते, सोते-जागते वह जुगनू के सपने देखती है । और एक दिन बांध टूट गया। पति-पत्नी में झड़प हो गई। राधेमोहन ने कहा- 'यह मुंशी तो भई, मक्खी की औलाद मालूम देता है । जाने का नाम ही नहीं लेता।' 'चले जाएंगे, अभी तो कमज़ोर बहुत हैं।' 'तो हमने क्या जिन्दगी भर का ठेका लिया है ?' 'लाए तो तुम्हीं थे। 'वह बीमार था । अब अच्छा हो गया, जाए यहां से ।' 'तो मुझसे क्या कहते हो, उनसे कहो । मैंने तो उन्हें बुलाया नहीं।'
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