२१४ बगुला के पंख इस बातचीत के बाद सभा विसर्जित हुई। कांग्रेस के जुलूस और सभी केन्द्रों की सभाओं की सफलता से जनसंघी घबरा उठे। उन्हें अपनी सफलता में सन्देह उठ खड़ा हुआ । जोगीराम के मुंह पर हवाइयां उड़ने लगीं। उन्होंने जाकर फणीन्द्र बाबू को पकड़ा। स्वामी गीतानन्द भी उनके साथ-साथ हो लिए। तीनों में गुप्त वार्तालाप हुआ । जोगी- राम ने कहा, 'औरतों के विना काम नहीं चलेगा बाबू साहब । कांग्रेस की सारी सफलता औरतों ही से बनी । देखा नहीं भारती कैसे सिंहनी की भांति दहाड़ रही थी।' 'तो उसकी दहाड़ हम देख लेंगे।' 'आप नहीं बाबू साहब, औरतें चाहिए औरतें । आप जानिए औरतों का जादू मर्दो पर चलता है।' 'तो बाबा हम यहां औरत कहां से लाएगा। हमारा बंगाल में तो हम सब कुछ कोरने सकता है।' 'लेकिन अब तो जो करना है यहां करना होगा। आप लोग अपने घर की औरत लोग को क्यों नहीं जुलूस में लाते ?' 'हमने घर-घर जाकर कोशिश की। परन्तु कांग्रेसियों ने जो हमारी बहू-बेटियों को बेपर्दा बाजार में निकाला तो भाई-बिरादरीवाले सब बिगड़ गए। अब कोई भी अपनी औरतों को नहीं आने देता । आप जानते हैं, हम लाला लोगों में पर्दे का बुरा सिस्टम है । फिर औरतें बच्चों को संभालें और घर का धन्धा देखें कि जुलूस निकालें । कांग्रेसियों ने उन्हें दिन भर धूप में घसीटा पर खाने-पीने को भी नहीं पूछा । इस बात से भी उनका पारा चढ़ गया। किसीने कह दिया कि उन्होंने दूसरी औरतों को रुपया दिया है तो और बिगड़ीं कि मुफ्त की हमीं हैं। घर की मुर्गी दाल बरावर ।' 'खैर, तो विधवाश्रमों, अनाथालयों से कोशिश कीजिए।'
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