पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२१३

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बगुला के पंख २११ विद्यासागर और उसके गुर्गे योजना बना रहे थे। विद्यासागर ने कहा, 'देखो भई, मुंशीजी के बीमार होने से हमारी जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं। कल की सभा में वह जोड़-तोड़ बैठाया जाए कि जनसंघ को मुंह की खानी पड़े। दिल्ली शहर सब शहरों की नाक, बादशाहों का नगर, भारत की राजधानी, वहां एक मच्छी खानेवाला बंगाली हमपर बाज़ी ले जाए, यह नहीं हो सकता। उपस्थित मंडली सब कुछ करने को आमादा थी। प्रत्येक के चेहरे पर रणोन्मुख सिपाही-सी दृढ़ निश्चयता थी। विद्यासागर ने कहा, 'हमारे जुलूस में एक हजार औरतें कम से कम होनी चाहिएं।' 'तो लाला फकीरचन्द से कहा जाए कि वे अपने लाला भाइयों की सब जवान सेठानियों को बटोर लाएं। बेकार घरों में पड़ी-पड़ी भैंस की तरह जुगाली करती हैं। दो-तीन सौ का जमाव तो हो ही जाएगा।' 'लेकिन बाकी के लिए क्या होगा ?' 'विभाजी, बाकी का प्रबन्ध तुम्हें करना होगा।' 'सब तो नहीं, पर तीन सौ लड़कियां मैं कालेजों से जुटा लूंगी। पर आपको खर्च करना पड़ेगा।' 'कितना?' 'दस रुपये फी लड़की। 'इतना 'मोटर लारी का खर्च है। फिर सबको खद्दर की जोगिया साड़ी चाहिए। सबके पास तो होंगी नहीं। उन्हें खरीदकर देनी होंगी। फिर उनका खाना-पीना चाय-पानी। 'खैर, रुपये की तुम चिन्ता न करो और ज्यादा से ज्यादा लड़कियां जुटा