बगुला के पंख १६ जुगनू का कण्ठ सूख गया। उसने जीभ से होंठों को तर करते हुए कहा, 'नहीं, थी, सब भाई-बन्दों ने छीन ली । बहुत मामला-मुकदमा हुआ।' 'चलो खैरसल्ला, घर पर कौन-कौन है ?' 'कोई नहीं।' 'तो जोरू न जाता, अल्ला मियां से नाता–यही बात है।' शोभाराम ने हंसकर कहा। जुगनू भी एक फीकी हंसी हंसकर चुप हो गया । 'खैर, तो अब कैसी नौकरी चाहते हो ?' 'जैसी भी मिल जाए। 'पढ़े-लिखे क्या हो ?' जुगनू फिर लड़खड़ाया । उसने कहा, 'स्कूल पास किया है।' 'क्या मैट्रिक ?' 'हां, हां,' जुगनू ने हकलाते हुए कहा । 'चलो बहुत है, हमारे कई मिनिस्टर मैट्रिक भी नहीं हैं। कुछ काम-धन्धा भी जानते हो ?' जुगनू का मन हुआ कि कह दे, 'खाना पकाना जानता हूं।' पर उसने मन को रोककर कहा, 'जानता तो नहीं हूं, पर मैं सब तरह की सख्त मेहनत करने को तैयार हूं।' 'यह तो मुंशी, बहुत अच्छी बात है। अच्छा सुनो, मैं प्रांतीय कांग्रेस का जनरल सेक्रेटरी हूं । क्यों न तुम मेरे सहायक बन जाओ। अभी तुम्हें पचहत्तर रुपया मासिक मिलेगा। हमारे साथ यहीं रहना-खाना । तकलीफ न होगी। मुझे एक भरोसे के आदमी की बड़ी सख्त ज़रूरत है।' 'भाई साहब, मैं आपकी सेवा में जान लड़ा दूंगा।' 'बस, तो यही ठीक रहा । कल से तुम दफ्तर चलो । ऐसा कुछ ज्यादा काम नहीं है।' 'ज्यादा होगा भी तो क्या ? आप इत्मीनान रखिए।' जुगनू ने आश्वासन दिया। इसके बाद बस थोड़ी देर गप-शप करके शोभाराम ने कहा, 'अच्छा, अब सोमो मुंशी, तुम्हारे लिए वह बाएं किनारे वाला कमरा ठीक करा दिया गया है।
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