२०६ बगुला के पंख चम्मच से सुबह-शाम मिलनेवाले आते । पर डाक्टरों ने मिलना-मिलाना बन्द कर दिया था, सिर्फ विद्यासागर प्रतिदिन सुबह आता, बहुत आवश्यक बात कह जाता। नवाब कभी-कभी शाम को प्राता। डाक्टर खन्ना और लाला बुलाकीदास भी कभी-कदाच आते। परन्तु इनकी दुपहरी बहुधा एकान्त ही में व्यतीत होती। तीन-चार दिन बीतने पर भी जुगनू ने गोमती से कोई बात नहीं कही। रोग अब काबू में आता जा रहा था, और जुगनू अपनी आवश्यकता की एकाध बात कह देता था। एक दिन दोपहर बाद जब जुगनू गहरी नींद सोकर उठा, उसका मन हलका था, उसे जगा हुआ देख गोमती दूध का प्याला लेकर आई। उसे दूध पिलाना पड़ता था। धीरे-धीरे उसने उसे दूध पिलाया । गीले तौलिये से मुंह साफ किया । इस समय उसके मुख की सांस जुगनू अपने मुंह पर अनुभव कर रहा था। उसकी एकाध लट भी लटककर जुगनू के माथे पर घूर रही थी। दूध पीने पर वह कुछ देर गोमती को एकटक देखता रहा। फिर उसने आहिस्ता से कहा, 'भाभी।' गोमती उसकी चारपाई पर झुकी। जुगनू ने कहा, 'बड़ा कष्ट दे रहा हूं भाभी, तुम न संभालतीं तो मैं ज़िन्दा न बचता।' 'ऐसी बात क्यों करते हो !' गोमती ने बड़े संकोच से कहा । वह हटने लगी तो जुगनू ने उसका हाथ पकड़ लिया, तकिये के नीचे से पर्स निकालकर कहा, 'इसे रख लो भाभी। 'यह क्या है ? 'जो भी कुछ है। तुम रख लो।' गोमती ने पर्स खोलकर देखा, नोटों से भरा था। उसने कहा, 'ना, मैं नहीं ले सकती।' 'तुम्हें मेरी कसम भाभी, मुझे मरा ही देखो जो ना करो।' 'वाह, कसम क्यों देते हो ? अच्छा उनसे पूछूगी।' 'ना, भाई से मत कहना। वे समझेगे कि उनके प्रेम का मूल्य' चुका रहा हूं। पर यह बात नहीं है।' 'यह बात नहीं है तो फिर क्या बात है ?' 'भाभी, मैं जानता हूं, तुम लोगों की थोड़ी आय' है। खर्च की तंगी है। इतने खर्च का भार कैसे सह सकती हो ?' 'तो घर के आदमी के लिए सब कुछ करना पड़ता है।'
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