बगुला के पंख ऊपर से कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कोई अयोग्य' अन- धिकारी व्यक्ति भाग्यचक्र या परिस्थितियों के कारण सामाजिक, राजनैतिक रूप से 'बड़ा' बन जाता है । और ऐसा तथाकथित 'बड़ा' बनने के लिए न तो उसे तपना पड़ता है और न अपने मानस को सुन्दर, सुसंस्कृत बनाना पड़ता है । और तब वह अपनी मूल असंस्कृत, दुर्दम्य प्रवृत्तियों के कारण, लोगों के विश्वास के साथ मनमाना खिलवाड़ करता है । शुद्ध -श्वेत खादी से ढका होने पर तो ऐसा व्यक्ति समाज के लिए और भी हानिकारक बन जाता है। 'जुगनू', इस कथा का नायक, जन्म से भंगी है। वह एक विलायती साहब का बैरा बनकर और मेम साहब का कृपापात्र बनकर मुंशी जगनपरसाद बन जाता है। और फिर वह परिस्थितियां उसे कांग्रेसी बना देती हैं। फिर अपने पद और प्रतिष्ठा की आड़ में अपनी अतृप्त वासनाओं से जैसा नंगा नाच वह नाचता है, धोती-कुर्ते के नीचे जैसा वह है, उसे अनावृत करके प्राचार्यजी ने एक यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है।
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