१६६ बगुला के पंख अतिरिक्त पति की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी पुत्र ही है, पुत्री नहीं। अतः जो पत्नी पुत्र उत्पन्न न करके पुत्री ही उत्पन्न करती है वह भी कानी कौड़ी की पत्नी है । पुत्र चाहिए, पुत्र ! भले ही वह मूर्ख रह जाए, लम्पट हो जाए, कुमार्गी हो जाए। पर वही पति की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी है। इतना ही क्यों ! वह घोर नरक से पिता का उद्धारकर्ता है । बोलो सड़ातन धर्म की जय ! परन्तु हाय-हाय ! चौपट कर दिया नेहरू की सरकार ने ! मृत पति की चिता पर जीती जला देने का पवित्र सतीत्वधर्म तो अंग्रेज़ ही नष्ट कर गए थे, बाद में कलियुग के प्रभाव से स्त्रियां विधवा न रहकर पुनर्विवाह करने लगीं। घर की चहारदीवारी से बाहर आकर सबसे हंसने-बोलने लगीं। बस पातिव्रत धर्म का बेड़ा तो इस तरह डूबता ही चला गया। अब रही-सही कसर नेहरू सरकार ने नये-नये कानून बनाकर पूरी कर दी, जिनमें पुत्री को भी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी करार दे दिया। पत्नी को तलाक का अधिकार दे दिया ! शिव ! शिव !! अव तक हिन्दू पतिव्रता के सहारे चन्द्र-सूर्य समय पर अपना काम करते थे। उन्हींके प्रताप से अग्नि' में उष्णता और जल में शीतलता थी। उन्हींके प्रताप से संसार चल रहा था। अब पतिव्रता संसार में नहीं रहेगी तो निश्चय ही उद्जनबम और अगुवम शीघ्र ही संसार को खत्म कर देंगे। अशु- बम और उद्जनवमों का प्रादुर्भाव, विश्वास कीजिए साहब, केवल पातिव्रत धर्म के लोप होने के कारण हुआ है । ठीक भी तो है, जब पातिव्रत धर्म ही न रहा तो दुनिया कहां रह सकती है ! आप कहेंगे कि यार, यह लेखक तो बेपर की उड़ाता है। दुनिया कहां गारत हो रही है ! रूसवालों ने और अमेरिकनों ने देर से अणुबम और उद्जन- बम बनाकर ज़रूर रख छोड़े हैं, पर वे उन्हें छोड़ते कहां हैं ? लखनवी गुस्सा कर खम ठोककर रह जाते हैं । इसपर मेरा कहना है-बन्दानवाज़, यह भी सब पातिव्रत धर्म का प्रभाव है । अंग्रेजों ने सती का पवित्र धर्म रोक दिया और नेहरू सरकार ने पातिव्रत धर्म का बेड़ा गर्क कर दिया तथा आजकल की नारी कोरी नारी ही रहना चाहती है, पतिव्रता पत्नी के धर्म की परवाह नहीं करती, पर फिर भी दुनिया से पतिव्रतानों का बीजनाश नहीं हुआ है। अभी भी पतिव्रताधर्म इस परम पवित्र भारत भूमि पर कायम है । मिसाल के लिए आप श्रीमती बुलाकीदास ही को ले लीजिए। गौर से
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