पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१८९

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बगुला के पंख १८७ पार दीख रहा था। दोनों के सामने शराब के गिलास भरे रखे थे । लाला देखकर हक्के-बक्के हो रहे थे । वे बौखलाकर हास्यास्पद चेष्टाएं करने लगे। जुगनू ने लाला की खुशामद से भरी हुई हास्यास्पद चेष्टाओं की कुछ भी परवाह न कर ज़रा मुस्कराकर कहा, 'याइए लाला फकीरचन्द साहब, कहिए मिज़ाज तो अच्छे हैं । पर मैं आपको दस मिनट से ज्यादा न दे सकूँगा । लेकिन मैं समझता हूं, सब बातें तय हो चुकी हैं। आप जनसंघ की उम्मीदवारी छोड़ने को तैयार हैं न ?' लाला पर जुगनू का रुझाब छाया हुआ था। उन्होंने ज़रा इधर-उधर करके कहा, 'कैसे कहूं, मेरी गति सांप-छछूदर जैसी हो रही है।' 'तो आप जनसंघ का चुनाव लड़िए । आपके मुकाबिले में मैं आपका पुराना दोस्त हूं, कांग्रेसी। मेरा खयाल है आपके दो लाख रुपये ठण्डे हो जाएंगे, और अन्त में आपको कामयाबी नहीं मिलेगी। पिटेंगे आप ज़रूर ।' 'लेकिन 'देखिए लालाजी, बहस के लिए मेरे पास समय नहीं है । मैं सिर्फ काम की बात करना पसन्द करता हूं। आप चाहें तो कांग्रेस से सुलह कर सकते हैं।' इसी समय बाला ने एक पैग भरकर लाला की ओर बढ़ाया, और बंकिम कटाक्षपात करते हुए हंसकर कहा, 'यह लीजिए, सुलह का पैगाम ।' जुगनू ने मुस्कराकर लाला की ओर देखा। लाला फकीरचन्द ने कहा, 'सुलह कैसी साहब ?' 'बताता हूं, पहले गिलास उठाइए, तकल्लुफ न कीजिए।' लाला ने चुस्की भरी । जुगनू ने कहा, 'कांग्रेस आपका मुकाबिला छोड़ देगी, अपने हल्के से आप विना प्रतिद्वन्द्वी चुन लिए जाएंगे । लेकिन दो शर्ते हैं।' 'कौन-कौन-सी ?' 'एक यह कि आप दो लाख रुपया कांग्रेस को दें। दूसरी आप कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ें। 'मुझे आप सोचने का कुछ मौका दीजिए।' "एक मिनट का भी नहीं। आप मेरे दोस्त हैं। दोस्ती का हक जितना निबाह सकता था निबाह चुका, आप सोचते रहिए, मुलाकात खत्म ।' बाला ने हंसते हुए उनके निकट खिसककर एक कागज़ उनकी ओर बढ़ाते