१८६ बगुला के पंख ५६ लाला फकीरचन्द सभा-भवन' से सीधे चैम्सफोर्ड क्लब पहुंचे। विद्यासागर वहां उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। वही उसका मैला लिबास, लापरवाही से मिला हुआ व्यक्तित्व । जरा-सा मुस्कराकर उसने लाला का स्वागत किया। उसने कहा, 'मुंशीजी आ गए हैं। परन्तु एक बहुत ही अहम् मसले पर पंजाब के मुख्यमन्त्री साहब से परामर्श कर रहे हैं। हमें ज़रा प्रतीक्षा करनी होगी।' लाला फकीरचन्द का इस क्लब में आने का प्रथम ही अवसर था। हकीकत यह थी कि वे यहां आने का कभी साहस ही नहीं कर सकते थे। अंग्रेजी राज्य में तो इधर कोई हिन्दुस्तानी बड़े से बड़ा अफसर अांख उठाकर देख भी नहीं सकता था। और अब भी यहां बड़े लोग ही, मिनिस्टर, एम० पी० और उनसे सम्बन्धित जन, पा सकते थे। यहां आने की अपनी योग्यता प्रकट करने के लिए लाला फकीरचन्द अंग्रेज़ी सूट पहनकर आए थे, जो उनके बेडौल शरीर और भद्दे चेहरे पर अजीब-सा लग रहा था । खासकर इसलिए भी कि वे इस लिबास को पहनने के अभ्यस्त न थे। विद्यासागर ने उन्हें एक ओर ले जाकर एक सोफे पर बिठाया और कुछ पीने का आर्डर वेटर को देकर बातचीत का सिलसिला शुरू किया। लालाजी की नज़र में विद्यासागर की इज़्ज़त बहुत बढ़ गई थी। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर उनसे पिछली मुलाक़ात में की गई बेअदबी की माफी मांगी। वे बारम्बार खुशामद और चापलूसी प्रकट कर रहे थे । लिबास भले ही विलायेती सभ्य' पुरुष का धारण किया था उन्होंने, पर थे तो कोरे लाला। आधा घण्टा प्रतीक्षा करने के बाद उन्हें मुंशी जगनपरसाद साहब के हुजूर में पेश किया गया। वही मुंशी जगनपरसाद हैं, जो एक दिन उनके साथ वेश्या के कोठे पर रात काट चुके थे। पर आज उनके दौरदौरे. ही कुछ और थे। उनकी मुलाकात के लिए उन्हें आध घण्टा प्रतीक्षा करनी पड़ी थी। लाला को कमरे में धकेलकर विद्यासागर बाहर ही रह गया था, कमरे में जाकर लाला ने देखा, एक परम सुन्दरी रूपसी बाला मुंशी की बगल में बैठी है । लीहलैस जाकेट और पारदर्शी नाइलोन की साड़ी में उसका नया यौवन आर-
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