पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१८५

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बगुला के पंख १८३ . रखनी ही पड़ेगी। नाते-रिश्तेदारी भी तो भुगतनी पड़ती है।' 'तो ऐसा करो लाला, सांप भी मरे न लाठी टूटे। देखिए, आप शहर के नामी-गिरामी व्यापारी हैं । आपको पार्लियामैंट में ज़रूर जाना चाहिए, पर आप कांग्रेस के खिलाफ मत खड़े होइए । कांग्रेस के टिकट पर खड़े होइए।' 'ना बाबा, कांग्रेस के तो मैं पास भी नहीं फटकने का। कांग्रेस की करनी तो ऐसी है कि बीच खेत उसे मारे। ऐसे-ऐसे शिकारी कुत्ते व्यापारियों पर छोड़ रखे हैं कि जान तंग है । अंग्रेजी राज बहुत अच्छा था बाबू । अब। अंग्रेजी राज से तिगुनी तो रकम भरनी पड़ती है । और काम के नाम अंगूठा। इन्कम टैक्स के मारे नाक में दम है। और जरा-जरा से कोटे के लिए नाक रगड़नी पड़ती है।' 'लालाजी कांग्रेस में लाख बुराई हो, पर जनसंघ से हजार दर्जे अच्छी है। जनसंघ ने लड़ाई-भिड़ाई और आग लगाने को छोड़कर और किया ही क्या है ! कांग्रेस ने देश को आजादी दी है । फिर अब तो कांग्रेसी ही राज है, यह भी तो सोचो । जनसंघ का उम्मीदवार तो बस एम० पी० ही बनेगा, पर कांग्रेस का उम्मीदवार मिनिस्टर भी बन सकता है । मुख्यमन्त्री भी बन सकता है।' 'अजी ये तो कोरी बातें ही बातें हैं। हम ठहरे व्यापारी । हमें तो घाटा ही घाटा है । सप्लाई का एक मामूली-सा ठेका है, जिसके लिए दौड़ते-दौड़ते नाक में दम हो गया। पर कल-परसों हो रही है। एम० पी० बनना भी एक व्यापार ही है भाई साहब ।' 'खैर, कितने मुनाफे का काम है ?' 'श्राप समझिए पांच-सात लाख तो कहीं नहीं गए।' 'पाप ही कर दो पूरा काम बाबू, दस हज़ार नज़र कर दूंगा आपकी ।' 'देखिए लालाजी, मैं देश का सेवक और कांग्रेस का खादिम हूं, मेरे साथ सौदा करने की कोशिश मत कीजिए। लेकिन कहां हैं कण्ट्राक्ट के कागज़ देखू ?' 'लीजिए,' लाला फकीरचन्द ने कागज़ विद्यासागर के हाथ में दे दिए । उनपर एक नज़र डालकर विद्यासागर ने कहा, 'रेलवे का ठेका है न ?' 'एक रेलवे का है दूसरा खाद कारखाने के बनाने का है।' 'उसके कागजात कहां हैं ?' लाला फकीरचन्द ने वे कागज़ भी विद्यासागर को दे दिए, उन्हें जेब में