१८२ बगुला के पंख 'अच्छा, तो तुम देशभक्त हो ? मुझे तो पूरे गुण्डे मालूम देते हो।' 'चोर को पुलिस का सिपाही जमदूत ही लगता है।' 'भई, मतलब की बात करो, फालतू बात करने का मेरे पास टाइम नहीं है।' 'काम ही की बात तो कर रहा था । कहता हूं, कांग्रेस के मुकाबिले पार्लियामेण्ट के लिए खड़े होते तुम्हें शर्म नहीं आती ?' 'देखो मिस्टर, तमीज़ से बात करो, यह तुम-तुम क्या करते हो ?' 'तुम-तुम तो तुम कर रहे हो । पहले तुम्ही तमीज़ से बात करो।' 'तो क्या तुम मुझे मेरे ही घर में तमीज़ सिखाने आए हो?' 'नही, जानता हूं चोरवाज़ारी करनेवाले लाला लोग तमीज़ नहीं सीख सकते । मैं तमीज़ सिखाने नहीं, तुमसे यह कहने आया हूं कि कांग्रेसी के मुकाबिले खड़े होने में तुम्हें शर्म आनी चाहिए।' 'क्यों आनी चाहिए ? मैं अपने दिल का मालिक हूं, किसीका इजारा है ? मुनीमजी, समझाओ इन्हें ।' 'मुनीमजी को जाली और झूठे बहीखाते लिखने दो लाला । मैं तुमसे पूछता हूं, तुम मेरी बात का जवाब दो ।' 'तो भाई साहब, आप चाहते क्या हैं, यह बताइए । मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?' 'अरे वाह लाला, आप तो तमीज़ से बात करने लगे । तो सुनिए, मैं आप- से यह कहने आया हूं कि कांग्रेस की मुखालिफत करना देशद्रोह है। आप कांग्रेस के मुकाबिले मत खड़े हूजिए। आपको मालूम है, कांग्रेस ने शहरी हल्के से मुंशी जगनपरसाद को खड़ा किया है। उनके पापपर अहसानात भी कम नहीं हैं- लाखों रुपया आपने उन्हींकी मार्फत कमाया है, आप और नहीं तो उन्हींका लिहाज़ कीजिए।' 'पर मैं क्या कर सकता हूं, मुझे तो मजबूर किया जा रहा है । मैं तो इस इल्लत में पड़ना नहीं चाहता । मुंशी साहब का भी मुझे बहुत लिहाज़ है ।' 'सो वह लिहाज़ आप इस तरह पूरा कर रहे हैं !' 'भई, सब व्यापारी और भाईबन्द मेरे पीछे पड़ गए, उनका लिहाज़ करना ज़रूरी हो गया, आप जानो रात-दिन का काम ठहरा उनसे । उनकी बात तो
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