पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१६०

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१५८ बगुला के पंख स्थानों पर अंग्रेज़ी में बातचीत करते नजर आते हैं, तब यह स्पष्ट हो जाता है कि अभी नई दिल्ली का भारतीयकरण होने में देर है।' 'आपका मतलब यह है कि नई दिल्ली भारत का शहर ही नहीं है ?' 'मेरा मतलब यह है कि बृहत्तर भारत से इसकी तनिक भी सांस्कृतिक समता नहीं है।' ये बातें हो ही रही थीं कि लंच तैयार हो गया। सूचना पाकर सब लोग लान पर जा बैठे। भारतीय-अभारतीय सभी प्रकार के खाद्य-पदार्थ थे। दिल्ली की दालमोठ और सोहन हलुआ, खस्ता कचौड़ी और पंजाबी छोले, पिस्ता- बादाम की लौज, स्पंज, रसगुल्ले, पेस्ट्री, सैण्डविच, पुडिंग, दहीबड़ा। खूब हंसी-दिल्लगी, कहकहे-ठहाकों के बीच लंच खत्म हुआ । लंच के बाद पान-सिगरेट की बारी आई। फिर निमन्त्रित लोग अलग-अलग टुकड़ियों में होकर कोई छांह में, कोई लान पर, कोई बराण्डे में, कोई भग्न मण्डप में बैठकर गपशप, ताश और सिगरेट का आनन्द लेने लगे । नौकर लोग उन्हें जो जहां था वहीं-गर्म काफी पहुंचा रहे थे। 1 ४५ लड़कियों की म्यूज़िक जमात बैठी। शतरंजी बिछाकर इसराज, सितार, तबला, हारमोनियम, वायलिन, बांसुरी ले-लेकर एक-एक लड़की बैठ गई। उमा ने सितार रानों में दबाकर उसपर चौटी देना प्रारम्भ कर दिया। मालती पैरों में धुंघरू बांधकर बैठे ही बैठे छमाका देने लगी। सितार और इसराज के स्वरों से मिलकर वायलिन सिसकारियां भरने लगी। सब सहेलियों के आग्रह से शारदा ने खम्माच की एक ठुमरी उठाई । एक समा बंध गया। बांकी भौंहें, बड़ी-बड़ी अांखें, अनावृत भुज-मृणाल, नवीन केले-सा रंग, चंपे की कली के समान उंगलियां, सितार के तारों पर घुमेर-सा करती हुई। चमेली के फूलों से लदी हुई लता के समान शारदा की वह छवि बहुतों के मन में घर कर गई । सबने ताली बजाकर उसका अभिनन्दन किया। केवल जुगनू का यह सब देखकर कण्ठ सूख गया। वह भीड़ में पीछे खड़ा होकर उस सुधा