पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१५२

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१५० बगुला के पंख स्त्रियां अधिक । पुरुष लगभग सभी तरुण, एक डाक्टर खन्ना ही प्रौढ़ थे, और स्त्रियों में सब लड़कियां, शारदा की सहेलियां । परन्तु एक प्रौढ़ महिला भी थीं, डा० खन्ना की जोड़-तोड़ की-मिसेज़ डेविड । शारदा की वे अध्यापिका रह चुकी थीं । उम्र कोई चालीस साल । मोटी और ठिगनी। जात की आयरिश थीं । पर उर्दू बड़े मज़े में बोल लेती थीं। बहुत दिनों से दिल्ली में रहती थीं। इस समय वे बुलाकीदास गर्ल्स हायर सैकण्डरी स्कूल की प्रिंसिपल थीं। उनके पति कोई एक मदरासी फिरन्ते थे । उन्हें उन्होंने अपनी चढ़ती जवानी में छोड़- छाड़ दिया था। अब वे सिर्फ उनका नाम ही नाम ग्रहण कर रही थीं । बहुत मज़ेदार औरत थीं। लड़कियां उन्हें खूब बनाती थीं। चेहरा उनका गोलमटोल एक टमाटर के समान था। कभी-कभी साड़ी पहनती थीं जो उनपर खूब फबती थी। आज भी वे एक साड़ी में ही आई थीं। प्रसव-वेदना से वे जीवन में मुक्त रही थीं। इससे उनके चेहरे पर वात्सल्य-भाव के स्थान पर एक परेशान-सी कठोर गम्भीरता सदैव बनी रहती थी । बहुत ही कम उन्हें हंसते हुए देखा जाता था। औरतों में घूम-फिरकर चन्दा एकत्र करने में और फैंसी फेअर के जमाव करने में लासानी थीं। अपने जीवन में वे भारतीय और पाश्चात्य जीवन का कुछ मिला जुला-सा संस्करण थीं। और वे बहुधा इस विषय पर बहस भी किया करती थीं। पर दृष्टिकोण उनका यही रहता था कि सब भारतीय ईसाई हो जाएं, और यूरोप की सभ्यता के पुजारी बनें । दो-तीन लड़कियों ने उन्हें घेर रखा था, और वे उन्हें बना रही थीं और खिजा रही थीं। उन्हें बनाने और खिजाने में उन्हें लुत्फ आ रहा था । उमा को अपनी ओर घूरते और मुस्कराते देखकर उन्होंने कहा, 'तुम्हारी साड़ी का रंग बड़ा शोख है उमा, और जूते भी तुम्हारे बड़े भद्दे हैं।' 'अफसोस है मैडम, इनके पास न दूसरी साड़ी है, न जूते।' कुमुद ने नकली गम्भीरता से कहा। 'मैंने तुमसे नहीं कहा था कुमुद । बिला वजह तुम्हें बीच में नहीं बोलना चाहिए । एटीकेट सीखो।' 'मुझे अफसोस है मैडम, आप ठीक कहती हैं। लेकिन ।' 'लेकिन क्या ? उमा एक एम० पी० की लड़की है, जो धनी भी है और इज़्ज़तदार भी। समझी ?'