१४८ बगुला के पंख चलकर डटकर खाया-पिया जाय, होहल्ला मचाया जाए, दिन भर सैर-सपाटा किया जाए । चैत के आखिरी दिन । कुछ गर्मी, कुछ सर्दी । खुले हुए दिन । धूप यद्यपि ज़रा तेजी पकड़ गई थी, पर अभी भी लोगों के मन में बीती हुई कड़ाके की सर्दी की याद थी । शारदा डा० खन्ना की इकलौती बेटी थी। सुशीला और आज्ञाकारिणी, बुद्धिमती और उच्चशिक्षिता। डाक्टर दुनिया में अपने धंधे के बाद यदि किसीको प्यार करते थे तो शारदा को । शारदा ने भी हंसकर सहेलियों का अनुमोदन किया। बस, पिकनिक जम गई। सब प्रबन्ध-भार रहा शारदा और उसकी सहेलियों पर । सहेलियां एक से बढ़कर एक नटखट । उमा, अरुणा, रजनी, शोभा, विद्या, कनक और बहुत-सी। स्थान चुना गया-हौज़खास । एक विस्मृत सम्राट के विस्मृत राजप्रासाद का खंडहर, जहां सैकड़ों वर्ष पूर्व अलाउद्दीन खिलजी ने भारत पर अबाध शासन किया था । खुशी की एक लहर छोकरियों के मन में समा गई । खूब विचार-विमर्श के बाद खूब बढ़िया-सा प्रोग्राम बनाया गया। शारदा अपनी सहेलियों के साथ तीन दिन सब सौदा-सुलफ खरीदने, सामान जुटाने, खानसामा, बावर्ची, नौकर-चाकरों की व्यवस्था करने में व्यस्त रही। प्रोग्राम बना-सव सामान और नौकर-चाकर सवेरे ही वहां पहुंच जाएंगे । सब लोग दस बजे पहुंचेंगे। फिर वहीं लंच और तीसरे पहर की चाय होगी। गाना-बजाना होगा, कविता-पाठ होगा और फिर चांदनी रात का लुत्फ लेकर थोड़ी देर इधर-उधर होहल्ला मचाकर दो घड़ी रात गए सब लोग घर लौटेंगे। मुशायरे से घर लौटकर जुगनू को शारदा का निमंत्रण-पत्र मिला। निमन्त्रण-पत्र के एक कोने पर लिखा था, 'मुंशी, अाना ज़रूर ।' एक स्लिप डा. खन्ना की भी थी। डाक्टर ने लिखा था, 'मुंशी, तुम बड़े भुलक्कड़ हो । और इधर-उधर तुम्हें काम-काज भी बहुत रहता है। देखना, कहीं इस निमन्त्रण को भूल मत जाना । वरना शारदा तुम्हें कभी माफ न करेगी।' निमन्त्रण-पत्र पाकर तथा डाक्टर खन्ना का पुर्जा पढ़कर जुगनू के मन में शारदा की याद फिर ताज़ा हो गई। उस दिन परशुराम की फटकार खाने के बाद जुगनू ने फिर उधर जाने का साहस नहीं किया था। उसे काम की व्यस्तता तो थी ही। यह भी भय था कि कहीं फिर वह रूखा-सूखा अध्यापक न भिड़ जाए। असल बात यह थी कि जुगनू परशुराम की सूरत से ही घबराता था।
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