पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१४९

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बगुला के पंख १४७ लात रखकर ही तो ऊंची कुर्सियों पर बैठते थे। उनकी योग्यता उनका पद थी। बड़े से बड़े विद्वान, योग्य' पुरुष उनके नौकर, उनके हुक्म के बन्दे थे । सेठों को, साहूकारों को देखिए । मालिक की योग्यता से किसीको क्या मतलब ! मालिक का पद ही काफी है। बस, वह सबसे बड़ा, सबसे श्रेष्ठ और सबसे ऊपर है। ऐसी ही यह पद की मर्यादा है । सो जुगनू भी एक पद पर आसीन था-ऊंची कुर्सी पर, सो उसके लिए सब जगह ऊंची कुर्सी तैयार थी। कहना चाहिए, जहां ऊंची कुर्सी पर बिठाने के लिए किसी योग्य' पुरुष की ज़रूरत होती, वहां उसपर नज़र पहुंचना स्वाभाविक था। आज की हमारी स्वदेशी सरकार भी वज़ारत की ऊंची कुर्सियों पर ऐसे ही आदमियों को बिठाती है । चपरासी तक के लिए योग्यता का सर्टिफिकेट दरकार है । परन्तु मिनिस्टर को किसी योग्यता की ज़रूरत नहीं। समझ लीजिए पद ही सबसे बड़ी योग्यता है। जुगनू को मान-सत्कार से मोटर से उतारकर ले जाया गया। भाषणों द्वारा उसका यशोगान किया गया, और फिर फूलमालाओं से उसे लाद दिया गया। सदारत की कुर्सी ग्रहण करते समय' उसने बहुत-बहुत अपनी नालायकी का इजहार किया। पर सबने इसे उसकी विनम्रता, शिष्टाचार ही समझा। उसकी अयोग्यता अस्वीकार कर दी गई और वह राजधानी का नामी-गिरामी आल इण्डिया मुशायरा धूमधाम से जुगनू की सदारत में समाप्त हुआ । समाप्ति पर धन्यवाद और कृतज्ञता के बोझ से लदा-फदा जब वह लौट रहा था तब वही मौलाना बड़ी गम्भीरता से बड़े-बड़े तालों के चश्मे से अदीबों को धूरते हुए जुगनू की बगल में बैठे थे, जिन्होंने पिछली रात उसके साथ शराबखोरी करके उसीके डेरे पर बदहोशी में रात काटी थी। ४२ शारदा ने एम०ए० में प्रथम स्थान लिया था। उसकी सखी-सहेलियों ने डाक्टर खन्ना को घेरकर एक पिकनिक का प्रस्ताव उपस्थित किया। लड़कियां उनके पीछे पड़ गईं, अोखला, कुतुब, कोटला फिरोजशाह, हुमायूं का मकबरा कहीं भी