पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१४३

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बगुला के पंख १४१ टुकड़े भी संभालकर रखे जा सकते हैं, मगर मौत का शिकार बन चुकने के बाद इस जिस्म को नहीं रखा जा सकता। हूं ऊं !' मौलाना घूर-घूरकर जुगनू को अपने चश्मे के तालों में से देखने लगे। जुगनू के मन पर इस समय इन सब मनहूस बातों से एक अवसाद-सा छा गया। उसने मन ही मन कहा, 'यह पाजी नवाब का बच्चा किस मनहूस मुर्दे को यहां उठा लाया । उसने नज़र उठाकर भी मौलाना को नहीं देखा, नीची नज़र से फर्श को ताकता रहा । इसी समय मौलाना ने यह शेर जड़ा, 'इनायत है नज़रे- तगाफुल भी उनकी । बहुत देखते हैं जो कम देखते हैं।' इतना कहकर मौलाना खिलखिलाकर हंस पड़े। नवाव ने कहा, 'मौलाना साहब वल्लाह ! आप एक ही ज़िन्दादिल आदमी हैं । आपकी सोहबत गनीमत है । भई मुंशी, मौलाना के लिए कुछ मंगवायो।' 'अभी लीजिए।' मौलाना 'क्या जरूरत है, क्या ज़रूरत है' कहते ही रह गए, मगर गजक, कबाब, और शराब, सोडा, बर्फ धीरे-धीरे सब समान मुहैया हो गया। लाला बुलाकीदास की उस रईसाना किन्तु वैष्णवी दावत में जो कसर रह गई थी, आधी रात के बाद तक भी पूरी होती रही। सबसे ज्यादा मौलाना ने पी और वाही-तबाही बकते हुए वहीं टें हो गए और नवाब ने भी फर्श पर पैर पसार दिए । समझिए तीन पापग्रह सातवें घर में आ जुड़े थे वह 80 गोमती और राधेमोहन का जोड़ा एक मजेदार चीज़ थी। उसे स्त्री-पुरुष न' कहकर स्त्री-पुरुष की तस्वीर कहना ज्यादा उपयुक्त होगा। राधेमोहन' में ज़रा-सी एक भावुकता और यत्किचित् कलात्मकता थी। इतने ही से वह पूरी तरह अपनी पत्नी का भक्त था। यह भक्ति दासता की सीमा को छू रही थी। उसके पति-प्रेम में अनेक प्रकार की बेहूदगियां थीं, जिनमें एक बेहूदगी उसकी नम्रता थी। गोमती एक अति साधारण बुद्धि की औरत थी। अभी उसकी उम्र भी कच्ची थी और बुद्धि भी। साधारणतया उसे सुन्दर कहा जा सकता