१३४ बगुला के पंख बार गोमती की नज़र मिली। और वह और भी लाज से सिकुड़ गई। जुगनू की वह नज़र उसे अच्छी नहीं लगी। परन्तु राधेमोहन का इधर ध्यान ही न था—उसने कहा, 'मुंशीजी, अब आप अपनी कोई कविता तो सुनाइए।' 'भाभीजी कहें तो सुना सकता हूं।' उसने फिर वैसी ही नज़रों से गोमती की ओर देखा । पर गोमती ने कोई जवाब नहीं दिया। वह नीची नज़र किए बैठी रही। राधेमोहन ने कहा, 'अरे भई, ज़रा कह दो।' गोमती का मन वहां से भागने को हो रहा था। वास्तव में वह एक असंस्कृत और एक शौकीन' प्रकृति की स्त्री तो थी, पर उसका चरित्र निर्मल था। एक प्रकार से उसे भोली स्त्री कहा जा सकता था। निस्सन्देह परिस्थिति- वश ऐसी स्त्रियां आसान शिकार बन जाती हैं । परन्तु इस समय तक भी गोमती का मन विकाररहित था और आज जुगनू की नज़रें उसे असह्य और अप्रिय प्रतीत हो रही थीं। पति के अनुरोध पर भी उसने मुंह नहीं खोला। हकीकत यह थी कि कविता के सम्बन्ध में उसे कुछ भी अभिरुचि नहीं थी। जुगनू ने कहा, 'अच्छा, तो मैं अब चला, भाभी मेरी कविता नहीं सुनना चाहतीं । है न यही बात ?' राधेमोहन ने क्रुद्ध दृष्टि से पत्नी की ओर देखा, पति की वह नज़र देख- कर उसने कुण्ठित होकर आहिस्ता से कहा, 'सुनाइए' । जुगनू ने बेहूदा-सी गज़ल पूरे हाव-भाव से पढ़ी । वह इस समय एक उच्छृखल लोफर की भांति उत्तेजित हो रहा था। उसकी आंखों में वासना की आग भड़क रही थी। राधेमोहन की उपस्थिति की तनिक भी परवाह बिना किए गोमती को अभिप्रेत बनाकर उसने कुछ शेर ऐसे भद्दे इशारों के साथ पढ़े कि गोमती को गुस्सा आ गया । यद्यपि वह उन शेरों का-गज़ल का पूरा अर्थ नहीं समझ सकी थी, फिर भी ऐसी गज़लें उसके लिए सर्वथा ही अज्ञात और अपरिचित न थीं। अशिक्षित स्त्रियों में ऐसी इश्किया गज़लें प्रायः गाने का रिवाज़ है । ब्याह-शादियों में स्त्रियां निधड़क इससे भी अधिक नंगी गज़लें गाती हैं, जिनके बहुत कम भाव वे समझ पाती हैं । परन्तु पुरुष के मुंह से सम्पूर्ण वासना की उत्तेजना से भरपूर चेष्टाओंसहित ऐसे शेर सुनने का गोमती को यह प्रथम अवसर ही था। उन अटपटे शब्दों को कुछ समझ और कुछ न
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