१३० बगुला के पंख आपको शायद जेल जाने का भय नहीं है।' 'जेल की क्या बात है, फांसी चढ़ने का भी भय नहीं है।' 'अजीव आदमी हैं आप, हवा से उलझते हैं । आप जेल जाएं या फांसी चढ़ें -मुझे आपसे कोई सरोकार नहीं ; मैं जाता हूं। 'क्या एकदम चल ही दिए ?' 'मैं जाता हूं,' कहकर जुगनू वहां से वेंत से पीटे कुत्ते की भांति दुम दबाकर भागा। उसके जाने पर एक घृणापूर्ण मुस्कराहट परशुराम के होंठों पर फैल गई। उसने उसकी ओर देखकर भुनभुनाते हुए कहा, 'कायर ! कमीना ! कुत्ता राधेमोहन की पत्नी एक अल्पशिक्षित, कच्ची उम्र की लड़की थी। सज- धजकर रहने की वह शौकीन थी। राधेमोहन ने यद्यपि बहुत डींग मारी थी कि वह जुगनू की कविता पर लट्टू है, वास्तव में न वह इस बात को समझती थी कि कविता किस चिड़िया का नाम है न' उसे कविता से कोई दिलचस्पी ही थी। जुगनू से भी उसका कोई प्राकर्षण न था । राधेमोहन ने जो समा बांधा था वह हवाई ही था, या कहना चाहिए उसका गधापन था । अलबत्ता यह बात अवश्य थी कि वह स्त्री राधेमोहन की अभावपूर्ण गृहस्थी में संतुष्ट न थी । वह एक शौकीन-मिज़ाज स्त्री थी और सज-धजकर सैर-सपाटा करने, सिनेमा देखने और खुशगप्पियां लड़ाने में रुचि रखती थी, जिसका यहां राधेमोहन की गृहस्थी में प्रायः अभाव ही था। दावत की तैयारी दोनों ने मिलकर खूब ठाठदार की । राधेमोहन रसोईघर में खुद ही पिल पड़ा था। कहना चाहिए, वह एक जनखा-सा आदमी था। उस दिन उसने स्कूल से छुट्टी ले ली थी । और तमाम दिन दोनों कच्चे पति-पत्नी उस भंगी के बच्चे की दावत की तैयारी इस तरह कर रहे थे जैसे कोई मिनिस्टर ही उनके घर आ रहा हो। जुगनू अपने साथ एक कैमरा भी खरीद लाया था। कैमरा कीमती था-
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