पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/११९

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बगुला के पंख नर्म-नर्म हथेलियों को अपने हाथों में दबाकर वे रुपये दिए थे, वह दबाव भी वह अभी महसूस कर रही थी। शोभाराम के घर से निकलकर जुगनू ने एक टोकरा बढ़िया दशहरी आम का खरीदा, उसका ठीक ढंग से पैकिंग कराया जैसे कहीं बाहर से आया हो और वह उसे लेकर लाला बुलाकीदास के मकान पर पहुंचा । जौहरी मुहल्ले में एक लम्बी पतली गली में लाला बुलाकीदास की पुश्तैनी हवेली थी। गली ज़रूर तंग और पतली थी, परन्तु मकान पुख्ता पत्थर का बना था। भीतर खुलासा सहन था । छोटी-सी फुलवारी भी सहन में लगी थी। जुगनू जानता था कि इस वक्त लाला बुलाकीदास घर पर नहीं होते। उसने टोकरा नौकर के हाथ भीतर भिजवा दिया। ज़बानी सन्देश दिया, 'मालकिन को मुंशी जगनपरसाद का प्रणाम कहना। ये आम लखनऊ से आए थे, कृपा कर स्वीकार करें।' नौकर ने भीतर से लौटकर वैठकखाना खोल दिया और कहा, 'आप ज़रा वैठिए।' जुगनू को बैठाकर वह भीतर चला गया और एक चांदी की तश्तरी में दालमोठ और पिस्ते की बर्फी लेकर तथा चांदी के गिलास में बर्फ का पानी लेकर पा हाजिर हुआ । तश्तरी सामने टेबल पर रखते हुए उसने कहा, 'ज़रा मुंह जुठार लीजिए, मालकिन अभी आती हैं।' 'इसकी क्या ज़रूरत थी ? जुगनू ने हंसते हुए कहा और एक पुश्तैनी रईस की तरह सोफे पर बैठकर लखनवी नफासत से नाश्ता करने लगा । नाश्ता खत्म होने पर नौकर चांदी की तश्तरी में पान दे गया। सिगरेट का डिब्बा पास रख गया। इसके बाद ही मालकिन ने बैठक में प्रवेश किया । हलकी आसमानी साड़ी, मुस्कराता चेहरा, भरा हुअा गुदगुदा शरीर, गोरा रंग, बड़ी- बड़ी नशीली अांखें, गले में मोतियों की एक लड़, कान में हीरे के टाप्स । होंठों पर पान की लकीर, सुडौल दांत, और टेढ़ी मांग में सिन्दूर की लकीर, उम्र 3