पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/११८

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बगुला के पंख और इसके साथ ही जुगनू का वह उत्तप्त आलिंगन उसे आहत करने लगा। वह लम्बी-लम्बी उसासें लेने और अपनी चारपाई पर छटपटाने लगी। शोभाराम ने कहा, 'क्या कुछ तकलीफ है तुम्हें ?' 'नहीं तो?' 'तो इस तरह क्यों कर रही हो ? नींद नहीं आ रही क्या ?' i 'तबियत तो ठीक है ?' 'ठीक ही है ? 'तो सो जाओ।' शोभाराम ने एक ठण्डी सांस भरी और करवट बदलकर सो रहे । सुबह उठते ही जुगनू शोभाराम के घर पहुंचा । पद्मादेवी शोभाराम को मुसम्मी का रस पिला रही थी । इस समय जुगनू में जड़ता नाम मात्र को भी न थी। शोभाराम को हंसते हुए नमस्कार करके उसने पद्मादेवी से कहा, “भाभी, ज़रा एक बात सुनना पद्मादेवी अचकचाई। शोभाराम ने कहा 'क्या बात है मुंशी ?' 'भाभी से एक काम है, भाई साहब ।' जुगनू ने मुस्कराते हुए कहा । 'सुन आनो मुंशी की बात ।' शोभाराम ने रस पीते हुए कहा । इस समय उसकी आंखें एक दैनिक पत्र पर घूम रही थीं। दूसरे कमरे में आकर जुगनू ने दो हजार रुपयों के नोटों की गड्डी पद्मादेवी की हथेली पर रखते हुए आहिस्ता से कहा, 'तुम्हें मेरी कसम, भाई साहब से न कहना।' 'लेकिन इतने रुपए 'पहाड़ पर बहुत खर्च होता है। रख लो और जिस वक्त ज़रूरत हो मुझे लिखना । संकोच न करना । मैं और रुपया भेजूंगा।' इतना कहकर जुगनू तेजी से लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ वहां से चल दिया। पद्मादेवी कहती ही रही, 'अजी सुनो, सुनो।' और फिर कुछ देर तक वह जड़ बनी हुई हथेली पर रखी हुई नोटों की गड्डी को देखती रही। रात भर वह अपने अवशिष्ट गहने बेचने या रहन करने की बात सोचती रही थी। उसे इस प्रकार अयाचित रूप में रुपया मिल जाने की कोई आशा ही न थी। जुगनू की कसम उसके कानों में गूंज रही थी और जुगनू जिस तरह उसकी