पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/११५

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बगुला के पंख 'हद दर्जे की तंगी है।' 'तो तुम मदद क्यों नहीं देते ? तुम्हारे पास तो रुपया है।' 'मैंने तय किया है, सुबह रुपए दूंगा।' 'किनको?' 'भाई साहब को।' 'नहीं, भाभी साहिबा को दो।' 'खैर, कितना?' 'दो हज़ार तो दो।' 'सुबह दे पाऊंगा। अब मोती की बात कहो।' 'लाला बुलाकीदास की घरवाली से जान-पहचान करो।' 'किसलिए?' 'नवाब का हुक्म है इसलिए।' 'इससे क्या फायदा होगा?' 'यह तुम देख लेना । अमा, चौथी बीवी है, लाला पके कद्द हैं और बीवी ककड़ी का ताजा रवा । उसे तुम्हारी सख्त ज़रूरत है । फिर अब तो रिश्ता भी कायम हो गया है।' 'कैसा रिश्ता?' 'देवर-भाभी का । अब तो तुम सही मानों में लाला बुलाकीदास के छोटे भाई हो।' 'क्या वे मुझसे मिलेंगी?' 'मैंने सुना है, सोशल वर्कर हैं, कांग्रेस में दखल रखती हैं । शाहखर्च और आज़ाद-तबियत हैं । परदा नहीं करतीं। उन्हें एक ऐसे आदमी की सख्त ज़रूरत है जो उन्हें आगे लाए। घर में ऐसी औरतों का दम घुटता रहता है। लाला बुलाकीदास के बूते का यह काम नहीं । वे तो अपने बही-खातों में फंसे रहते हैं। उनकी बीवी को अब तुम संभालो।' 'क्या मतलब? 'अजी मतलब यह कि उन्हें आगे लायो। मुल्क की खिदमत का मौका दो, रास्ता दिखायो । जैसे लाला बुलाकीदास का कमेटी में सब काम तुमने संभाला है, वैसे ही बीवी का भी चार्ज ले लो।' नवाब ने हंसते हुए कहा । जुगनू नहीं