पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/११४

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११२ बगुला के पंख ३१ डेरे पर आकर जुगनू ने देखा, नवाब बड़ी देर से बैठा है। जुगनू ने कहा, 'कहो, कोई खास काम है ?' 'मोती बींधना होगा।' 'कैसा मोती ?' 'कीमती मोती। 'तुम तो पहेलियां बुझाते हो नवाब, सीधी बात क्यों नहीं कहते ।' 'सीधी बात तो गाली होती है।' 'तो गाली ही सही।' 'खैर, यह कहो, कहां गए थे ?' 'भाई साहब से मिलने गया था। तबियत उनकी बहुत खराब है, पहाड़ जा रहे हैं।' 'भाभी साहिबा से मुलाकात हुई ?' 'कहां तक ?' जुगनू ने नवाब की तरफ देखा और मुस्करा दिया। उसने कहा, 'मोती की बात कहो न ?' 'कह दूंगा, तुम पहले हीरे की बात बतायो।' 'बात क्या बताऊं । बस मर रही है । भाई साहब आ न जाते तो न जाने क्या कुछ न हो जाता। 'तो अकेले में मुलाकात हुई न ?' 'जब मैं पहुंचा तो अकेली ही थी।' तो अब हेस-नेस कर डालो मुंशी। शिकार से ज्यादा खेल करना ठीक नहीं।' 'मेरी हिम्मत नहीं पड़ती। क्या करूं । और वह तो डर से मरी जाती है।' 'पहाड़ तो वह भी जा रही है न ?' 'जाना ही होगा।' 'खर्च-वर्च का क्या हाल है ?' ब-७