१०६ बगुला के पंख गुण्डागर्दी का शोर-शिफा कर रहे थे। पर अभी ऐसे बहुत-से तरुण थे जो कांग्रेस के नाम और निष्ठा से चिपके हुए थे। अब भी वे अपने को कांग्रेसी और देश- भक्त मानते थे। उनके लिए कांग्रेस में अब केवल एक ही काम रह गया था कि जब कांग्रेसी नेताओं का चुनाव हो, तब वे अपनी गुण्डागर्दी, अनैतिक स्वभाव और साहसिक प्रवृत्ति से काम लेकर चुनावों को सफल बनाएं। इसलिए जब चुनावों की आंधी आती थी तो इन' आवारागर्द तरुणों की चांदी बन जाती थी। कांग्रेस कमेटी के दफ्तर उनके शिविर वन जाते थे। वहां से उन्हें खाना मिलता और सुविधाएं प्राप्त होती थीं। सबसे बढ़कर बात यह कि कांग्रेस वर्कर का सम्मान प्राप्त होता था। जुगनू ने इन तरुणों के गुणों और उपयोगिता को ठीक-ठीक समझ लिया था और उसके जैसे असंस्कृत और अयोग्य' जन के लिए ऐसे तरुण बड़े उपयोगी थे। उसकी प्रकृति भी लगभग वैसी ही थी। अतः उनसे वह अन्य कांग्रेसी नेताओं की भांति दूर ही से काम न लेता था वरन् उन्हें सच्चे दिल से प्यार करता और उनके साथ मित्रता का व्यवहार करता था। इसलिए ऐसे सैकड़ों तरुण जुगनू के परम सहायक और प्रशंसक बन गए थे। और कांग्रेस के वाता- वरण में वे उसके परम सहायक प्रमाणित हुए थे। जुगनू ने अब मन में यह ठान लिया था कि वह ऐसे चुनिंदा गुण्डा प्रकृति के नौजवानों की एक वालंटियर कोर बनाकर उन्हें अपनी महत्त्वाकांक्षा का माध्यम बनाएगा। अतः ऐसे आवारागर्द तरुणों के लिए जुगनू का घर तीर्थ बन गया था। जुगनू उनसे दिल खोलकर बात करता और मुक्त हाथों से उन्हें सहायता देता था। ऐसे तरुणों की चरित्रहीनता की उसे परवाह न थी। बहुत-से तरुण उसकी छत्र- छाया में अभयदान प्राप्त कर मौज-मज़ा करते थे । बहुत-से तरुण म्युनिसिपल कमेटी में नौकर हो गए थे। बहुतों को छोटे-छोटे ठेके मिल गए थे। बहुतों को ठेकेदारों का प्रश्रय मिल गया था। इन नौजवानों के नेतृत्व के सम्बन्ध में वह न शोभाराम के अनुशासन के अधीन था, न' नवाब के । न वह उनके सम्बन्ध में अपने इन दोनों प्रधान सहायकों से किसी प्रकार की सम्मति-सहायता लेता था। रुपये-पैसे का उसे मोह न था । हाथ खुलते ही वह उन्हें खूब खिलाने-पिलाने लगा और वे अब जुगनू की जय-जयकार करने लगे।
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