१०४ बगुला के पंख कि चाहे कितना ही छोटा आदमी हो, उसके साथ प्रेम और सहानुभूति से पेश आना। किन्तु किसीसे घनिष्ठता न बढ़ाना, न किसीको दोस्त-राज़दां बनाना । जुगनू के हक यह वात अच्छी थी। वह नहीं चाहता था कि उसकी पोल खुले । वह खुद भी डरा-डरा-सा रहता था। परन्तु अब तो और लोग उसीसे डरते थे। धीरे-धीरे जुगनू इस रहन-सहन' का अभ्यस्त और ढीठ होता जाता था। शोभाराम का अब भी उसे बहुत भारी सहारा था। यद्यपि शोभाराम भी अब उससे दवता था, पर नवाब की बुद्धि से जहां वह अपनी तिकड़मबाज़ी चलाता था, वहां शोभाराम की बुद्धि से वह अपने पद और कांग्रेस लीडर की मर्यादा की भी रक्षा करता था। शोभाराम ने यद्यपि उसे डेरा बदलने को मना किया था और जब जुगनू नये डेरे में इस ठाठ-बाट से रहने लगा तो आश्चर्य भी किया था कि इतना रुपया उसके पास कहां से आया, परन्तु इस सम्बन्ध में उसने जुगनू से कुछ कहना ठीक नहीं समझा। असल बात यह थी कि वह रुग्ण रहने के कारण इन बातों से उदासीन रहता था । फिर अब' जुगनू के आफिस से हट जाने पर काम का भार फिर उसपर आ पड़ा था। इसके अतिरिक्त कांग्रेसी अमलदारी में ऐसी हवा चल ही रही थी। फिर जुगनू शोभाराम के प्रति एकनिष्ठ सेवक की भांति व्यवहार करता था। उसके काम में सहायता भी देता था । एक विशेष गुण जुगनू में यह था कि वह परिश्रम से जी नहीं चुराता था। शोभाराम इस बात से बहुत खुश थे आवारागर्द और बेकार किन्तु कांग्रेसी नवयुवकों का उसका घर अब पनाहगाह बनता जा रहा था । जब वह जिला कांग्रेस कमेटी का ज्वाइण्ट सेक्रेटरी था, तभी से वह उनका मुरव्वी बन गया था। सच पूछा जाए तो कांग्रेस ने ऐसे नौजवानों की एक बड़ी बिरादरी बना दी थी। अंग्रेज़ी अमलदारी में, खासकर सन् '४२ के तोड़ के बाद, इस बिरादरी का निर्माण हुआ था। सभी देशों में ऐसे बिगडैल तरुण होते हैं। असल बात तो यह है कि तरुणों का रक्त ही बिगडैल होता है । जो उठती उम्र के लड़के पढ़ने-लिखने में तेज़ नहीं होते, माता-पिता का सही अनुशासन जिनपर नहीं होता, स्वभाव और परिस्थितियों से वे साहसिक हो जाते हैं। पारिवारिक असुविधाएं उन्हें घर से विद्रोही बना देती हैं। बहुधा ऐसे तरुण घर से भाग आते हैं और आवारागर्दी का जीवन
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