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बंकिम-निबन्धावली—
 

समझते हैं। इन्द्रियोंकी प्रकृति सर्वत्र एक तरहकी है, इसी लिए बाह्य विषयोंकी सब अवस्थायें भी हमारे निकट सर्वत्र एकरूप हैं। इसीसे हम काल, आकाश आदिके समवायकी नित्यता जान सकते हैं। यह ज्ञान हमारा ही है, इसीसे कोम्टने इसको स्वतःप्राप्त या आन्तरिक ज्ञान नाम दिया है।

पाठकोंको फिर देख पड़ेगा कि आधुनिक यूरोपका दर्शन घूम फिरकर उसी प्राचीन भारतीय दर्शनमें मिल रहा है। जैसे चार्वाकके प्रत्यक्षवादके साथ मिल और बेनके प्रत्यक्षवादका सादृश्य देखा गया है, वैसे ही वेदान्तके मायावादके साथ कोम्टके इस प्रत्यक्ष प्रतिवादका सादृश्य देखा जाता है। यूरोपमें आध्यात्मिक विषयके ऐसे बहुत कम तत्त्वोंका आविष्कार हुआ है जिनकी सूचना प्राचीन आर्योंने अपने ग्रंथोंमें न कर दी हो।

कोम्टके ' आभ्यन्तरिक ज्ञान ' के मतके प्रधान प्रतिद्वन्द्वी जान स्टुअर्ट मिल हैं। उन्होंने कार्य-कारण-सम्बन्धके नित्यत्वका आश्रय लिया है। वे कहते हैं कि हम लोगोंने प्रत्यक्षके द्वारा एक यह अकाट्य संस्कार प्राप्त किया है कि जहाँ कारण वर्तमान है वहीं उसका कार्य वर्तमान रहेगा । जहाँ पहले देखा है कि ' क' वर्तमान है वहीं' ख ' को भी देखा है । फिर अगर हम कहीं ' क ' को देखें तो हम जान सकते हैं कि यहींपर 'ख' भी है। क्योंकि हमने प्रत्यक्षके द्वारा जाना है कि जहाँ कारण रहता है वहीं उसका कार्य रहता है । समान्तराल-भाव कारण है और संमिलन-विरह उसका कार्य है। क्योंकि हमने जहाँ जहाँ समान्त- राल-भाव देखा है, वहीं देखा है कि मिलन नहीं हुआ। अतएव समान्त- राल-भाव सदा संमिलन-विरहके पहले रहता है। इसी कारण हम जानते हैं कि जब जहाँ दो समान्तराल रेखायें होंगी वहीं उनका मिलन नहीं हो सकता। अतएव यह ज्ञान प्रत्यक्षमूलक है।

अन्तमें हर्बर्ट स्पेन्सरका मत है। वे भी प्रत्यक्षवादी हैं। किन्तु वे कहते हैं कि ये सब प्रत्यक्षमूलक ज्ञान हमारे अपने प्रत्यक्षसे उत्पन्न नहीं हैं। प्रत्यक्षजात संस्कार पुश्तैनी होते हैं। मेरे पूर्व पुरुषोंके जो प्रत्यक्ष-जात संस्कार थे उनका कुछ अंश मैंने पाया है। मैं उन संस्कारोंको लेकर

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