पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/३८

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ज्ञान।
 

रहकर हमने सुना कि मेघ गरज रहे हैं, पक्षी बोल रहे हैं। यहाँपर मेघके शब्द और पक्षीके बोलनेका कानोंके द्वारा प्रत्यक्ष-ज्ञान हुआ। यह श्रवणे- न्द्रियका प्रत्यक्ष हुआ। इसी प्रकार चक्षु, श्रवण, घ्राण, त्वचा और रसना इन पाँच इन्द्रियोंके द्वारा पाँच प्रकारका प्रत्यक्ष ज्ञान होता है। आर्य दार्शनि- कोंने मनकी भी गिनती इन्द्रियों में की है। अतएव वे मानसप्रत्यक्ष भी मानते हैं। मन बाह्य इन्द्रिय नहीं है। भीतरी इन्द्रियके साथ बाहरी विषयका संयोग असंभव है। अतएव मानसप्रत्यक्षसे बाह्य विषय नहीं जाना जा सकता। किन्तु अन्तर्ज्ञान मानस-प्रत्यक्षके ही द्वारा हुआ करता है।

जो पदार्थ प्रत्यक्ष होता है, उसके विषयमें हमें ज्ञान होता है किन्तु प्रत्यक्षके बिना भी हमारा विषयका ज्ञान सूचित होता है। मैं जिसके किवाड़े बंद हैं उस कोठरीमें सोया हुआ हूँ। इसी समय मेघका शब्द सुन पड़ा। इससे श्रावण-प्रत्यक्ष या श्रवणसम्बन्धी प्रत्यक्ष हुआ। किन्तु यह प्रत्यक्ष ध्वनिका है, मेघका नहीं। मेघ यहाँपर हमारे प्रत्यक्षका विषय नहीं है। तथापि हमको मालूम हो गया कि आकाशमें मेघ है। ध्वनिके प्रत्यक्षसे मेघके अस्तित्वका ज्ञान कहाँसे हुआ? हम पहले बहुत बार देख चुके हैं कि आकाशमें मेघके सिवा कभी ध्वनि नहीं होती। ऐसा कभी नहीं हुआ कि मेघ न हो और ऐसी ध्वनि सुन पड़े। अतएव बंद दरवाजेवाली कोठरीमें रहकर भी हम बिना प्रत्यक्षके जान गये कि आकाशमें मेघ है। इसको अनुमिति या अनुमान कहते हैं। मेघकी ध्वनिको हमने प्रत्यक्ष सुनकर जाना, और मेघको अनुमानके द्वारा।

मान लो, बंद दरवाजेवाली कोठरीमें अन्धक र है और उसके भीतर तुम अकेले हो। इसी समय तुमने शरीरके साथ अन्य किसी मनुष्यके शरीरके स्पर्शका अनुभव किया। उस समय कुछ देखे बिना ही तुमने जान लिया कि कोठरीके भीतर मनुष्य आया है। वह स्पर्शका ज्ञान त्वचाका प्रत्यक्ष है, किन्तु कोठरीके भीतर मनुष्यका ज्ञान अनुमान है। उस अँधेरी कोठरीमें तुम यदि जूहीके फूलकी महक पाओगे तो समझोगे कि वहाँ पुष्प आदि हैं। यहाँ गन्ध ही प्रत्यक्षका विषय है। पुष्प अनुमानका विषय है।

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