वायु―मैं इस अमल मृदुल सुशीतल सुवासित खिली हुई कलीसे क्रीड़ा करूँगा। तू अधःपतित, नीचगामी, नीचवंश है। तू इस सुखके आसनपर बैठा रहेगा? उतर।
बिन्दु―मैं आकाशसे आया हूँ।
वायु―अबे तू पार्थिवयोनि है। तुझे नीचगामी नाले आदिमें रहना चाहिए। तू इस आसनपर कहाँ? उतर।
जूही―ठहरो न।
बिन्दु―वह ठहरने ही नहीं देता।
जूही―ठहरो न, ठहरो न, ठहरो न।
वायु―(जूहीसे) तू इतनी गर्दन क्यों हिला रही है?
जूही―तुम हटो।
वायु―मैं तुमको गले लगाऊँगा सुन्दरी!
बिन्दु―इस गड़बड़में अब मैं नहीं रह सकता।
जूही―अच्छा तो फिर मेरे पास जो कुछ है, वह तुमको अर्पण करती हूँ। धो ले जाओ।
बिन्दु―क्या है।
जूही―थोड़ासा मधु सञ्चित है और थोड़ासा परिमल है।
वायु―परिमल में लूँँगा, उसी लोभसे आया हूँ। दे―
जूही―(बिन्दुसे) तुम जाओ; देखते नहीं हो, यह डकैत है!
बिन्दु―तुमको छोड़कर किस तरह जाऊँ? किन्तु ठहर कर यह दृश्य देख भी नहीं सकता। जाता हूँ।
बेला और विष्णुकान्ता―(बिन्दुसे) अब कहो भैया स्वर्गवासी! आकाशसे उतर कर आये थे न? अब मिट्टीमें गिरो, मोहरीमें बहो―
जूही―(वायुसे) छोड़ो! छोड़ो!
वायु―क्यों छोडूँँ? दे, परिमल दे।