मैंने रामधनसे कहा—" चार लड़के—तीन लड़कियाँ ? और उसपर दो बहुएँ ले आये हो ?” उसने हाथ जोड़कर कहा—“जी हाँ, आपके आशी- र्वादसे दो बहुएँ आ गई हैं।"
मैंने कहा—उनके कोई बालबच्चा भी हुआ है ?
रामधनने कहा—जी हाँ, एकके दो लड़कियाँ हैं और एकके एक लड़का
मैंने कहा—शत्रुकी आँखोंमें राई-नोन, परिवार तो तुमने खूब बढ़ा रक्खा है। बहुत परिवार होनेके कारण पहले ही तुमको खाने-पीनेका कष्ट था । अब तो वह कष्ट और भी बढ़ गया होगा ?
रामधन—जी हाँ, अब खाने-पीनेका बड़ा कष्ट है।
तब मैंने रामधनसे पूछा-तो तुमने इतना परिवार क्यों बढ़ा लिया ?
रामधनने कुछ विस्मित होकर कहा—यह क्या साहब ! मैंने क्यों परिवार बढ़ाया ? विधाताने बढ़ाया।
मैंने कहा—गरीब विधाताको वृथा दोष मत दो। लड़कोंका ब्याह तुमने ही किया है। इस कारण तुमने ही दो बहुएँ बढ़ा ली हैं और लड़कोंका ब्याह करनेसे ही दो पोती और एक पोतेकी भी वृद्धि हो गई है।
रामधनने बहुत ही कातर भावसे कहा—आप इस तरह मेरे परिवारकी बढ़तीको न खूटिए; अभी उस दिन मेरा एक महीने भरका पोता मर चुका है।
मैंने दुःख प्रकट करके पूछा—वह कैसे मरा रामधन ? ।
रामधन कुछ उत्तर न देता था । बहुतसे जिरहके सवाल करके मैंने यह जान लिया कि माताके दूध न होनेसे उसकी मृत्यु हो गई है। माताके पीड़ित हो जानेसे दूध न निकलता था, उधर रामधनकी गऊ भी मर चुकी थी। दूध मोल लेकर पिलानेका सामर्थ्य नहीं था। लड़का खानेको न पाकर पेटकी पीड़ा भुगतकर मर गया । अनाहारका एक फल पेटकी पीड़ा भी है, इस बातको शायद बहुत लोग न जानते होंगे।
फिर मैंने रामधनसे पूछा—अब तुम छोटे लड़केका ब्याह करोगे ?
रामधनने कहा—रुपयोंका कुछ इन्तजाम होते ही वह काम भी कर डालूँगा।
१४८