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राज्य-भक्त

कर दिया। मैं दरबार से अलग रहकर निष्काम भाव से, जितनी सेवा कर सकता हूँ, उतनी दरबार में रहकर कदापि नहीं। हितैषी मित्र का जितना सम्मान होता है, स्वामि-भक्त सेवक का उतना नहीं हो सकता।

वह विनीत भाव से बोल―हुजूर, मुझे इस ओहदे से मुआफ रक्खे। मैं यो ही आपका ख़ादिम हूँ। इस मसब पर किसी लायक आदमी को मामूर फरमाइए (नियुक्त कीजिए)। मैं अक्खड़ राजपूत हूँ। मुल्की इंतजाम करना क्या जानूँ।

बादशाह―मुझे तो आपसे ज्यादा लायक ओर वफादार आदमी नज़र नहीं आता।

मगर राजा साहब उनकी बातों में न आए। आख़िर मज़बूर होकर बादशाह ने उन्हे ज्यादा न दबाया। दम-भर बाद जब रोशनुद्दौला को सज़ा देने का प्रश्न उठा, तब दोनो आदमियों में इतना मत-भेद हुआ कि वाद-विवाद की नौबत आ गई। बाद- शाह आग्रह करते थे कि इसे कुत्तो से नुचवा दिया जाय। राजा साहब इस बात पर अड़े हुए थे कि इसे जान से न मारा जाय, केवल नज़रबंद कर दिया जाय। अंत में बादशाह ने क्रुद्ध होकर कहा―यह एक दिन आपको ज़रूर दग़ा देगा!

राजा―इस ख़ौफ से मैं इसकी जान न लूँगा।

बादशाह―तो जनाब, आप चाहे इसे मुआफ कर दें, मैं कभी मुआफ नहीं कर सकता।