अगर उनके हाथ में हथियार होता, तो इस वक्त रोशन की लाश फडकती हुई दिखाई देती।
राजा बख्तावरसिंह आगे बढ़कर बादशाह को आदाब बजा लाए। लोगों की जय-ध्वनि से आकाश हिल उठा। कोई बाद- शाह के पैरों को चूमता, कोई उन्हे आशीर्वाद देता।
रोशनुद्दौला का शरीर तो लात और घूसों का लक्ष्य बना हुआ था। कुछ बिगड़े-दिल ऐसे भी थे, जो उसके मुँह पर थूकते भी संकोच न करते थे।
प्रातःकाल था। लखनऊ में आनंदोत्सव मनाया जा रहा था। बादशाही महल के सामने लाखों आदमी जमा थे। सब लोग बादशाह को यथायोग्य नजर देने आए थे। जगह-जगह गरीबों को भोजन कराया जा रहा था। शाही नौबतख़ाने में नौबत झड़ रही थी।
दरबार सजा। बादशाह हीरे और जवाहर से जगमगाते, रत्न-जटित आभूषणो से सजे हुए सिंहासन पर आ विराजे। रईसों और अमीरों ने नज़रे गुज़ारी। शायरो ने कसीदे पढ़े। एकाएक बादशाह ने पूछा―राजा बख्तावरसिंह कहाँ हैं? कप्तान ने जवाब दिया―कैदखाने में।
बादशाह ने उसी वक्त, कई कर्मचारियों को भेजा कि राजा साहब को जेलखाने से इज्ज़त के साथ लावें। जब थोड़ी देर के बाद राजा ने आकर बादशाह को सलाम किया, वह तख्त