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प्रेम-पंचमी

कप्तान―मैंने उसी अँगरेज़ हज्जाम को मिला रक्खा है। दरबार में जो कुछ होता है, उसका पता मुझे मिल जाता है। उसी की सिफारिश से आपकी खिदमत में हाज़िर होने का मौक़ा मिला। घड़ियाल में दस बजते हैं। ग्यारह बजे चलने की तैयारी है। बारह बजते-बजते लखनऊ का तख़्त खाली हो जायगा।

राजा―( घबराकर ) क्या इन सबने उन्हे क़त्ल करने की साजिश कर रक्खी है?

कप्तान―जी नहीं, कत्ल करने से उनकी मंशा पूरी न होगी। वादशाह को बाजार की सैर कराते हुए गोमती की तरफ ले जायँगे। वहाँ अँगरेज सिपाहियों का एक दस्ता तैयार रहेगा। वह बादशाह को फौरन् एक गाड़ी पर बिठाकर रेजि- डेसी ले जायगा। वहाँ रेजिडेट साहब बादशाह सलामत को सल्तनत से इस्तीफा देने पर मज़बूर करेंगे। उसी वक्त उनसे इस्तीफा लिखा लिया जायगा, और इसके बाद रातोरात उन्हें कलकत्ते भेज दिया जायगा।

राजा―बड़ा ग़ज़ब हो गया। अब तो वक्त़ बहुत कम है; बादशाह सलामत निकल पड़े होंगे?

कप्तान―ग़ज़ब क्या हो गया। इनकी ज़ात से किसे आराम था। दूसरी हुकूमत चाहे कितनी ही खराब हो, इससे तो अच्छी ही होगी।

राजा―अँगरेज़ों की हुकूमत होगी?